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Tuesday, September 29, 2020

वैज्ञानिक सोच, मानवीय संवेदनाओं का व्यक्तित्व : ये हैं तरुण जैन

ये तरुण जैन हैं जिनकी सोच वैज्ञानिक है और व्यक्तित्व मानवीय संवेदनाओं से युक्त। ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ नामक अखबार के संपादक हैं। वैज्ञानिक शोध, नयी जानकारी आदि के संबंध में यह अखबार हिंदी भाषा का पहला ऐसा अखबार है जो पूरी तरह विज्ञान को समर्पित है। तरुण जी के नाम से परिचित था। नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट के जरिये और कुछ मित्रों के जरिये। पहली मुलाकात हुई वर्ष 2016 में जब गोवा में ‘ओस्नोग्राफी’ यानी समुद्री विज्ञान के एक कार्यक्रम में देशभर के अनेक पत्रकार आये थे। बेहद सरल व्यक्तित्व। एक-दो मुलाकातों के बाद पता नहीं क्यों मुझे लगा कि इनसे मेरी पटरी मेल खाएगी। मैं एक तो संकोची स्वभाव का हूं, दूसरा मैं विज्ञान का छात्र नहीं रहा हूं। साहित्य के प्रति मेरा रुझान रहा। यह अलग बात है कि पिछले 20 वर्षों से विज्ञान एवं शोध को लेकर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हजार से अधिक लेख लिखे। विज्ञान का छात्र न होने के कारण किसी चीज की पूरी ताकीद करने के बाद ही उस पर लिखता हूं। खैर गोवा का वह कार्यक्रम समुद्री विज्ञान पर आधारित था। पूरे दिन वैज्ञानिकों को अलग-अलग विषयों पर सुना। जहां कभी कोई दिक्कत होती, तरुण जी से ही पूछ लेता। कभी लगता कि ये झल्ला न जायें। अभी दो दिन तो हुए मिले हुए, लेकिन ये तो चाटू निकले। मैं खुद पर ये चाटू का लेबल कभी भी चस्पां नहीं होने देता। ऐसा कुछ नहीं हुआ, जैसा मैंने सोचा। एक बात बहुत अच्छी लगी तरुण जी की जब मैंने उनसे कुछ जानना चाहा तो सबसे पहले उन्होंने मुझसे पूछा, आप विज्ञान बैकग्राउंड से हैं या आर्ट्स। उसके बाद उन्होंने शुरू से बताना शुरू किया। कोटा में प्लाज्मा तकनीक के बारे में हो या फिर विज्ञान के अन्य पहलुओं की बात, उनसे काफी चर्चा हुई।
चूंकि उस कार्यक्रम में देशभर से अनेक पत्रकार आये थे। पत्रकार बिरादरी को अच्छी तरह जानता हूं। कहीं स्वाभिमान, कहीं घमंड और कहीं संस्थान का पैमाना। तरुण जी कई बातों के गवाह हैं। वैज्ञानिक बातों के बीच उनका लब्बोलुआब को एक पंक्ति में कहूंगा-
चांद को छूके चले आए हैं विज्ञान के पंख, देखना ये है कि इन्सान कहां तक पहुंचे।

 

संक्षिप्त परिचय
ऊपर तो एक संक्षिप्त विवरण था तरुण कुमार जैन से मेरी मुलाकात का। आइये उनके बारे में थोड़ा सा आपको बता दूं। पिंकसिटी जयपुर निवासी तरुण कुमार जैन अपने पाक्षिक अखबार ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ में नित नये मुद्दों को उठाते हैं। वह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सार्वजनिक संचार पर 11 वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के पोस्ट कॉन्फ्रेंस सत्र के संयोजक रहे, जिसमें 60 से अधिक देशों के विशेषज्ञों ने भाग लिया था। उन्होंने कई मेगा वैज्ञानिक कार्यक्रमों के दौरान दैनिक विज्ञान समाचार पत्र प्रकाशित किए हैं। तरुण कुमार जैन विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2018 पर प्रिंट मीडिया के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हैं। उन्हें चौधरी चरणसिंह कृषि अनुसंधान पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए कृषि मंत्रालय भारत सरकार से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और हिंदी विज्ञान पत्रकारिता के लिए 70 वें स्वतंत्रता दिवस समारोह पर राज्य पुरस्कार, राजस्थान के मुख्यमंत्री द्वारा। डॉ बीसी देब मेमोरियल पुरस्कार मैसूर विश्वविद्यालय में 103 वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के दौरान प्रदान किया जा चुका है। इनके अलावा भारतीय विज्ञान लेखक संघ द्वारा दिलीप एम सलवी इस्वा राष्ट्रीय विज्ञान संचार पुरस्कार, तथा विज्ञान संचार और विज्ञान लोकप्रियकरण के क्षेत्र में सराहनीय कार्य के लिए दीपक राठौर मेमोरियल अवार्ड से भी पुरस्कृत किया जा चुका है। वह भारत के अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव, वैज्ञानिक दृष्टिकोण सोसाइटी, भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन, भारतीय विज्ञान लेखक संघ जैसे कई संगठनों से जुड़े हैं। वह माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान की पत्रिका के संपादकीय बोर्ड के पूर्व सदस्य रहे और पिंकसिटी प्रेस क्लब जयपुर की पत्रिका का भी संपादन किया। वह वर्ष 2012 में भारतीय विज्ञान लेखक संघ के संयुक्त सचिव, पिंकसिटी प्रेस क्लब जयपुर के निदेशक मंडल के चार बार सदस्य, जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ़ राजस्थान (जार) के राज्य प्रचार सचिव चुने गए।
परिचय अभी जारी है
तरुण जी से मेरी दूसरी मुलाकात करीब सवा साल पहले कोटा में हुई। यहां परमाणु ऊर्जा संयंत्र के तहत पत्रकारों का एक सम्मेलन था। बेशक एक लंबे समय के बाद उनसे मुलाकात हो रही थी, लेकिन बीच-बीच में कभी-कभी बात हो जाती थी। हमारी मुलाकात को लंबा वक्त हो चुका था, लेकिन अब तक हम लोग घर-परिवार की बातें नहीं कर पाये। फिर उनके अखबार को लेकर चर्चा हुई। मेरे कुछेक सवाल पर उनका अंदाज इस तरह था जैसे एक कवि ने लिखा है-
खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं, धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं। ये कैंचियां खाक हमें उड़ने से रोकेगी, हम परों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं|
कोटा में भी अनेक जगहों से आये पत्रकार बंधु मिले। इसी दौरान ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ के विस्तार की भी चर्चा उन्होंने की। उनसे जब कुछ सवालात किए तो उनका अंदाज ऐसे था मानो कह रहे हों-
शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ, कीजै मुझे क़ुबूल मेरी हर कमी के साथ।
इसको भी अपनाता चल, उसको भी अपनाता चल, राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।
कोटा में मेरी दोस्ती कुछ अन्य पत्रकारों से भी हुई। तरुण जी से वे लोग अच्छी तरह परिचित थे, मेरी मुलाकात नयी थी। फिर तो मैंने देखा कि अनेक वैज्ञानिक से लेकर विज्ञान के क्षेत्र में लिखने वाले धुरंधर पत्रकार भी ‘जैन साहब’ को जानते हैं। मुझे लगा-
मिलेगी परिंदों को मंजिल ये उनके पर बोलते हैं, रहते हैं कुछ लोग खामोश लेकिन उनके हुनर बोलते हैं। 
कोटा में मुलाकात को करीब सवा साल हो गया। इस बीच तरुण जी के अखबार को पीडीएफ फॉर्मेट में देखता रहा। इसी बीच, पत्रकार संगठनों में कुछ तनातनी के मसले पर तरुण जी से फोन पर बात हुई। उनकी पहली प्रतिक्रिया थी, ‘हमें मिलजुलकर एक होकर रहना होगा, तभी भलाई है।’ वाकई बिना किसी की बुराई किए, किसी की तारीफ किए उन्होंने मेलजोल की बात कही जो मन को भा गयी। उसी दिन सोचा कि तरुण जी को लेकर अपने ब्लॉग पर कुछ लिखूंगा। आज उन पर कुछ लिखते-लिखते चंद पंक्तियां देखने को मिलीं जिनका यहां जिक्र करना प्रासंगिक लग रहा है-

हो मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये, ज़िन्दगी भोर है सूरज सा निकलते रहिये, एक ही पांव पे ठहरोगे तो थक जाओगे, धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये 
हदे शहर से निकली तो गांव गांव चली, कुछ यादें मेरे संग पांव-पांव चली, सफ़र जो धूप का हुआ तो तजुर्बा हुआ, वो जिंदगी ही क्या जो छांव छांव चली।
कोटा सेमिनार के अंतिम दिन मित्र मंडली।



2 comments:

तरुण कुमार जैन said...

धन्यवाद श्री केवल तिवारी जी। आप अच्छे इंसान और अच्छे मित्र हैं। शुभकामनाएं

kewal tiwari केवल तिवारी said...

जी धन्यवाद। अब मुलाकात होनी चाहिए।