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Friday, July 16, 2021

छोटी-छोटी बातों की यादें बड़ी

 ऑफिस के लिए तैयार हो चुका था। बेटे कार्तिक के पास फोन आया। वह बोला मैं बाहर आ रहा हूं। मेरी छठी इंद्रिय सक्रिय हो गयी। क्या मंगाया है? पूछा तो भावना बोली पता नहीं। छोटा बेटा धवल, जो ऑनलाइन क्लास ले रहा था, बोला मास्क मंगाये हैं। आपके ऑफिस जाने के लिए। पहले जो मंगाये थे, वे कम पड़ गये हैं। भावना, धवल बात कर भी रहे थे और मंद-मंद मुस्कुरा भी रहे थे। मैं ऑफिस के लिए तैयार तो हो गया था, बस जूते पहनने बाकी थे। जूते जिन्हें कई दिनों से धोने की योजना बन रही है। भावना कई बार कह चुकी है कि गंदे हो गये हैं, लेकिन धो देंगे तो सूखेंगे नहीं। कार चलाने में मुझे पता नहीं क्यों ये लाइटवेट जूते ही कंफर्ट लगते हैं। एक जोड़ी और भी जूते हैं जो हैवी हैं, उन्हें गाड़ी चलाते वक्त पहनता हूं तो अटपटा लगता है। खैर...। भावना बोली पांच मिनट रुक जाओ। तभी कार्तिक यानी कुक्कू एक पैकेट लेकर आ गया। बेहद उत्साहित। ये क्या हैं? फिर मैंने सवाल किया। फिर खुद ही जवाब भी दिया, लग रहा है जूते हैं। ओह... समझा। मेरे लिए गिफ्ट। दो दिन बाद मेरा जन्मदिन जो आ रहा था। यानी 18 जुलाई। इस 18 जुलाई को 49 सालों का हो जाऊंगा। यानी अर्धशतक से एक साल पीछे। अरे क्यों मंगाये। मैंने कपड़े दिए तो हैं सिलाने के लिए, मेरा सवाल था, पूरे परिवार से। ये कपड़े सिलवाने की जिद भी भावना की ही थी। कपड़े गिफ्टेड थे, बस उन्हें सिलवाना था। गिफ्ट का पैकेट आया और मैंने जूते कहा तो पैकेट को खोलने की तैयारी हो गयी। उसी वक्त धवल दौड़कर आया और पैकेट लाकर छिपाने लग गया, बोला नहीं आपके बर्थडे के दिन खोलेंगे। तभी देखना इसमें क्या है। कुक्कू बोला, पापा को पता लग गया है। भावना ने भी कहा, अब खोलकर पहन ही लो। धवल नाराज हो गया। मैं कहने लगा अरे बच्चे की जिद मान लेते। खैर... जूते खोले गये। बहुत शानदार। रंग भी बहुत शानदार। हल्के। मैंने पहन लिए। धवल की थोड़ी नाराजगी से परेशान हुआ, लेकिन उसकी नाराजगी का भी एक अलग मजा था। कुछ समय पहले वह मेरे से लिपटालिपटी कर रहा था। परिवार की यही खुशी तो अनमोल खजाना है। मैं कार चलाते वक्त भावुक हो गया। भावुकता में शायद थोड़ा सुबक भी गया। मुझे पहले वह गीत आया जिसके बोल हैं छोटी-छोटी बातों की है यादें बड़ी, भूलें नहीं बीती हुई एक छोटी घड़ी। सोचता रहा। सचमुच ये बातें कितनी अनूठी होती हैं। गिफ्ट छोटा या बड़ा नहीं होता। मैं कितना खुश हो जाता था जब धवल और कुक्कू मुझे कागज पर हैप्पी बर्थडे पापा लिखकर देते थे। ऐसे ही जब मैं लखनऊ में ट्यूशन पढ़ाता था तो कई बच्चे मुझे न्यू ईयर कार्ड बनाकर देते थे। गिफ्ट परंपरा को मैं बहुत अच्छा नहीं मानता। लेकिन परिवार के बीच खुशियों के इस तरह के पल मुझे भावुक कर जाते हैं। मैं आज सुबह से तमाम बातें याद कर रहा था। हरेला के दौरान मुझे बचपन, फिर जवानी और अब बची-खुची जावानी याद आ रही थी। इसी दौरान मुझे याद आया एक शेर जिसके बोल हैं-

इस प्यारी सी दुनिया में एक छोटा सा मेरा परिवार है,
खुशियां मुझे इतनी मिलती है जैसे रोज कोई त्योहार है।

सचमुच त्योहार ही तो था यह। आज तो वैसे भी हरेला पर्व था। सुबह उसकी खुशी भी की सेलिब्रेट। हरेला काटा। एक दूसरे के सिर पर रखा। आशीर्वाद दिया। मंदिर गये। बच्चों के लिए कुछ पकवान बने। हम सबने खाये। फिर भावना को डॉक्टर के यहां ले गया क्योंकि उसके मुंह में कुछ छाले हो रहे थे। वहां डॉक्टर ने मेरा शुगर चेक कराया। डॉ कमल बहुत केयरिंग हैं। वह अक्सर मेरा हालचाल लेते हैं। शुगर आज 187 आया। अमूमन मेरा शुगर 220 या 230 आता है। मैंने लाइफ स्टाइल में बहुत बदलाव किया है। इस बदलाव में और शुगर लेवल कम करने में परिवार का पूरा हाथ है। असल में मीठे की यह बीमारी खत्म भी होती है मीठे से ही यानी घर में वातावरण अच्छा है, तनाव नहीं है तो बीमारी खत्म। बीमारी बढ़ने का कारण भी परिवार ही हो सकता है, लेकिन इतना विस्तार में क्या जाना। इस वक्त तो चार पंक्तियां और याद आ रही हैं जिसमें कवि ने कहा है-

मुसीबत में खड़ा जो साथ बन दीवार होता है, हमारा हौसला हिम्मत वही परिवार होता है,
बड़े मजबूत दुनिया में लहू के रिश्ते होते हैं, कहां सबके नसीबों में लिखा ये प्यार होता है।

थैंक्स धवल, थैंक्स कुक्कू और थैंक्स भावना।

1 comment:

Unknown said...

🙏🙏🙏 welcome papa, happy birthday in advance