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Tuesday, July 20, 2021

खुशी, गम, उत्साह, बेचैनी और जन्मदिन पर शानदार बधाइयां

केवल तिवारी

कभी खुशी, कभी गम या दुख, कभी बेचैनी और कभी उत्साह। दिनचर्या में ऐसे ही मनोभावों से तो गुजरते हैं हम लोग। कभी खुश हम अपने कारणों से होते हैं तो कभी दूसरों के कारण भी। इसी तरह दुख का कारण भी कभी हम खुद होते हैं तो कभी कोई और होता है। वैसे तो कारणों की पड़ताल करें तो कई बातें सामने आएंगी, लेकिन वर्तमान पल को जी लेने की जो शिक्षा हमारे बड़े-बुजुर्ग देते हैं, वह है बहुत शानदार। आप कोशिश करें खुशी के पलों को भरपूर जीने की। फिर कभी उदासी में उन्हें याद करें। इसी तरह कभी आप दुख वाले पलों को याद करें फिर कारण जानें संभव हो तो उनका निदान करने की कोशिश करें। मामला 18 जुलाई का है। यानी 18 जुलाई, 2021, मेरा जन्मदिन। बधाई संदेशों का तांता लग गया। मजे की बात यह है कि मैं खुद कई बार लोगों को जन्मदिन पर बधाई नहीं दे पाता। एक तो मैं फेसबुक नहीं देख रहा, दूसरे याददाश्त की कमी है। जन्मदिन पर मैसेज तो पहली रात से ही आने लगे थे, लेकिन 18 जुलाई की सुबह से ही बधाई के लिए फोन भी आने लगे। हमारे पूर्व समाचार संपादक हरेश वशिष्ठ जी का फोन सबसे पहले आया। फिर ट्रिब्यून से ही रिटायर वरिष्ठ पत्रकार कमलेश भारतीय जी का। इसके बाद बैंकिंग क्षेत्र के शीर्ष पदाधिकारी एवं यूनियन में सक्रिय अश्विनी राणा जी का। ऑफिस आया तो संपादक जी ने आशीर्वाद दिया। फिर वरिष्ठ पत्रकार रास बिहारी जी का फोन आया। ऐसे ही अनेक मित्रों, अनुजों के फोन आये। कमलेश भारतीय जी ने उम्र पूछी तो मैंने कहा कि 50 के करीब पहुंच गया हूं। उन्होंने बड़े सहज भाव से कहा, यानी 10 साल और दैनिक ट्रिब्यून की सेवा करनी है। उनकी ये blessing अच्छी लगी। उस दिन मैंने सुबह और शाम दोनों टाइम डायरी लिखी। ब्लॉग भी लिखने का मन था, लेकिन समय नहीं मिल पाया। शाम को डॉ चंद्र त्रिखा जी का मैसेज भी आया, उन्होंने आशीर्वाद दिया। उनके चैनल से भी कई जानकारियां मिलती हैं। birthday के बाद आज (मंगलवार 20 जुलाई, 2021) भी सुबह से ठानी थी कि ब्लॉग लिखूंगा। फिर मंगलवार का व्रत। सुबह पूजा-पाठ का लंबा कार्यक्रम चला। दोपहर को जब ऑफिस के लिए निकला तो मन उदास हो गया। मेरी गाड़ी के windscreen पर किसी ने पत्थर मारा था। पहला शक तो बच्चों पर ही जा रहा है जो कॉलोनी के बाहर की तरह बने घर की छत पर खेलते रहते हैं। करीब महीने भर पहले ही मैंने शीशा बदलवाया था। मारुति के सर्विस सेंटर से। बाकी तो बीमा क्लेम हो गया, लेकिन करीब डेढ़ हजार फिर भी लगे। दिनभर काम में व्यस्त रहा। ऑफिस आकर भी मूड खराब सा ही रहा। फिर सोचा, अब उदासी से क्या होगा। कुछ solution ढूंढ़ना होगा। शीशा तो  बदलना ही होगा, लेकिन उससे बड़ा झंझट सारे स्टीकर फिर से बनवाने का है। शाम होते-होते जब काम तो थोड़ा फारिग हुआ तो ब्लॉग लिखने बैठ गया। दिनभर इस मसले ने उदास ही करके रखा। असल में एक तो हम जैसे lower middle class वालों के लिए कार लेना भी घर लेने जैसा ही है, तिस पर इस तरह के खर्च और झंझट अंदर तक तोड़ देते हैं। दो दिन बाद ही कार से अंबाला जाना है। खैर चलिए क्या कर सकते हैं। इस बार का जन्मदिन बधाइयों के मामले में खास रहा। आज के समय में जहां अनेक लोग तोलमोल के बधाई देते हैं या नफा-नुकसान का अंदाजा लगाकर मैसेज या फोन करते हैं, उस दौर में बेहद आत्मीयता से मुझे बधाइयां मिलीं, मैं गदगद हुआ। अब इस नये संकट से भी उबर ही जाऊंगा। शाम को जब हमारे यहां से ही रिटायर हुए और Tribune Society Complex में मेरे पड़ोसी गणेश जी से बात हुई तो मन थोड़ा हल्का हुआ। जीवन के विविध आयाम हैं, चलते रहिए।

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