केवल तिवारी
दिवस यानी डे मनाने का देश-दुनिया में जो चलन है, वह अनूठा तो है। इधर कुछ दशकों से अपने देश में भी जिस तरह से यह ‘culture’ फैला है, वह भी काबिल-ए-गौर है। मदर्स डे हो या फादर्स डे। वेलेंटाइन डे हो या फ्रेंडशिप डे। डॉक्टर्स डे हो या फिर कोई अन्य। मैंने कई दिवसों पर लिखा है, मुझसे लिखवाया भी गया है। विरोध में कभी नहीं रहा मैं। हालिया मसला है फ्रेंडशिप डे का। लोग कहते हैं कोई एक दिन थोड़ी हो सकता है मित्रता का। मित्रता तो शाश्वत है। मैं भी मानता हूं कि मित्रता तो एक ऐसी ‘रिश्तेदारी’ है जो टूटती नहीं। मित्रता के जिक्र पर मुझे याद आया मशहूर लेखक प्रताप नारायण मिश्र (Pratap Narain Mishra) का एक निबंध जिसका शीर्षक ही था ‘मित्रता’ शायद यह हमारे हिंदी के कोर्स में भी था। नौवीं और दसवीं के दौरान। बात आगे बढ़ाऊं, यहां पर यह उल्लेख करना जरूरी है कि हाल ही में नौवीं और दसवीं के ही पुराने साथियों ने एक व्हाट्सएप ग्रूप (Whatsapp group) बनाया है। मित्र विमल तिवारी की शायद पहल थी। फिर तो कई मित्र उसमें जुड़े। मित्र भजनलाल से भी मैं कई बार इस तरह के ग्रूप को बनाने के लिए कह चुका था, क्योंकि उनके संपर्क में कई मित्र हैं। इसी दौरान पत्रकारिता के दौरान मित्रों का भी एक group बना। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हम पढ़े। इस ग्रूप का नाम पंछी एक डाल के रखा गया। मित्र मनोज भल्ला ने इसकी पहल की। इन ग्रूप्स में विचारों में भिन्नता है, लेकिन मन में नहीं। यानी मतभेद हैं, मनभेद नहीं। परिवार के ग्रूप को छोड़ दें तो (क्योंकि ऐसे ग्रूप तो होने ही हैं आत्मीय) मेरे पसंदीदा ग्रूप में ‘हिंदी हैं हम’ शामिल हैं। बड़े भाई समान हीरावल्लभ शर्मा जी ने मुझे इसमें जोड़ा। अनेक विद्वजन इसमें हैं। विचारों का आदान-प्रदान होता है। अच्छे और सकारात्मक संदेश पढ़ने को मिलते हैं। इसी तरह बेसहरा एवं गरीब बच्चों के लिए सार्थक प्रयास कर रहे उमेश पंत की पहल पर बना एक समूह करीब डेढ दशक से निर्बाध चल रहा है। कोरोना काल को छोड़ दें तो महीने-दो महीने में 20-22 लोग मिलते हैं और साल में ये सभी परिवार। इस समूह के लोग धन संग्रह ग्रूप से जुड़े हैं। कोरोना काल में भी अनेक ग्रूप बने जो सिर्फ सहायतार्थ बने। किसी को कोई जरूरत थी तो उसके लिए या किसी का नंबर लेने के लिए। लेकिन वर्चुअल (Virtual) दुनिया तो वर्चुअल ही होती है। अंतत: लोग Good morning Good night पर आ ही जाते हैं।
खैर... बात मैं मित्रता दिवस यानी Friendship Day पर कर रहा हूं। मेरी बात पीछे छूट गयी थी प्रताप नारायण मिश्र जी की रचना मित्रता पर। उसी में शायद एक कहानी का जिक्र था जिसमें एक राजकुमार कुछ दिनों से अपने पिता के साथ नहीं आ-जा रहा था। यानी पिता से कटा-कटा सा रहता था। राजकुमार की जब राजा ने खैर ख्वाह ली तो उन्होंने संदेश भेजा, ‘मुझे बुखार है।’ राजा ने गौर किया कि इस दौरान राजकुमार के तमाम मित्र उससे मिलने आते हैं प्रसन्नचित्त दिखते हैं। आते हुए भी जाते हुए भी। पता चला कि राजकुमार आमोद-प्रमोद में लीन होने लग गए थे। उनके कथित मित्र इस सबका आनंद ले रहे थे। एक दिन राजा स्वयं राजकुमार का हालचाल लेने पहुंच गये। राजकुमार के मित्र इधर-उधर से नौ दो ग्यारह हो गये। पिताजी के अचानक आगमन से राजकुमार अचंभित। क्या कहें? डर भी कि पता नहीं राजाजी क्या करेंगे। राजा ने धैयै से पूछा, ‘अब बुखार कैसा है?’ राजकुमार को कुछ नहीं सूझा, बोले-‘पिताजी बुखार ने मुझे अभी-अभी छोड़ा है।’ राजा ने राजकुमार के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘बहुत अच्छी बात है, कुसंगति रूपी बुखार जितना जल्दी छोड़ दे, अच्छा है। ये न छोड़े तो व्यक्ति को स्वयं ऐसी संगत को छोड़ देनी चाहिए।’ यह एक कहानी थी मित्रता के बारे में बताने की। यानी अच्छी संगत है तो ठीक, बुरी संगत है तो सब गड्डमड्ड। संगति को लेकर भी अलग-अलग विचार हैं। एक विचार है कि यदि व्यक्ति स्वयं ठीक है तो कुसंगति उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। इसका तर्क देने वाले कबीर दास जी को कोट करते हुए कहते हैं-
संत ना छोड़े संतई, जो कोटिक मिले असंत। चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।
या इस तरह से
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत। चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।
दूसरी ओर संगति के असर पर तर्क दिया जाता है-
काजल की कोठरी से कैसे ही सयानो जाये, एक लीक लागि है, लागि है पै लागि है।
खैर मेरा विचार है कि संगत, कुसंगत का असर किशोरावस्था तक ही सीमित है। प्रैक्टिल लाइफ में तो आपको कितने ही लोग मिलते हैं और आप सबको टैकल करते हुए चलते हैं। वैसे मित्रता की परिभाषा समझाने वाले कहते हैं कि जरूरी नहीं समान विचारधारा वाले ही मित्र बनें। समान हैसियत वाले ही मित्र बनें। कृष्ण-सुदामा की मित्रता की चर्चा हमारे यहां की जाती है। एक समय बाद जब मैच्योरिटी आ जाती है तो संगत-कुसंगत गौण हो जाती है। विचार भिन्नता तो हो सकती है, लेकिन खुद को ही श्रेष्ठ और सबकुछ मानने वाले व्यक्ति के साथ शायद ही किसी की मित्रता हो सकती हो। तभी तो शायद रहीमदास जी ने कहा-
कह रहीम कैसे निभे, बेर-केर को संग। वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग।
कोरोना का दौर और मित्रता
रहीम दास जी का एक दोहा है-
कह रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीति, विपत्ति कसौटी जे कसे तेई सांचे मीत।
विपत्ति में काम आने वाला ही असली मित्र है। कोरोना काल में अनेक मित्र भी असहाय से हो गये थे। अस्पतालों में पद, पैसा और प्रतिष्ठा कोई चीज काम नहीं आ रही थी, लेकिन फिर भी लोगों ने कोशिशें कीं। सोशल साइट्स पर कई ग्रूप बने। जिससे जितना बन पड़ा, उतनी मदद की। किसी की मदद काम आ गयी, कोई उदास ही रह गया। वह दौर तो था ही ऐसा। अकल्पनीय।
कुछ तो बात है, वरना कैसे हो जाती है मित्रता?
बेशक मित्रता किसी का चुनाव या चयन करके नहीं की जाती, लेकिन कुछ तो ऐसा होता है जो दो लोगों को मित्र बना देता है। एक कहावत भी तो है कि आप एक मैदान में हजार लोगों को छोड़ दीजिए, कुछ ही देर में आपको 10-10 या 20-20 लोगों का समूह बना मिलेगा। यानी विचारों के मैच करने पर दोस्ती हो ही जाती है। कई बार आप ट्रेन में सफर कर रहे होते हैं तो आपके अनजान लोग मित्र बन जाते हैं। यह मित्रता लंबी चलती है। फिर भी आगाह किया जाता है कि-
गिरिये पर्वत शिखर ते, परिए धरनी मंझार। मूरख मित्र न कीजिए, बुड़ो काली धार।।
अच्छे मित्र की महत्ता को इस तरह से बताया गया है-
कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय। खीर खीड भोजन मिलै, साकट संग न जाय।।
इसी तरह तुलसीदास जी कहते हैं-
आवत ही हरषै नहीं नैनं नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
मित्रता हो जाये तो जरा-जरा सी बात पर उसमें दरार नहीं आनी चाहिए। मुझे याद है बचपन में एक बार बड़े साहब ने मित्रता के बारे में कहा था जब दो सत्यवादी सती हो जायें वही मित्रता है। उन्होंने दोस्ती को दो सती नाम दिया। इसका अर्थ उन्होंने समझाया कि जब दो लोगों के बीच हुई बातें तीसरे तक न पहुंचे, यही मित्रता है। इस मित्रता को अपने इगो या गलतफहमी में तोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि-
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े तो गांठ परि जाय॥
साथ ही यह भी कहा गया कि अच्छा व्यक्ति यदि रूठ जाता है तो उसे मनाना चाहिए। कहा गया-
टूटे सुजन मनाइये जो टूटे सौ बार। रहिमन फिरि-फिरि पोहिये, टूटे मुक्ताहार।।
इसी तरह रीतिकालीन कवि बिहारी ने भी आगाह किया कि मित्रता को शाश्वत बनाये रखने के उपाय यही है कि इसमें धन-वैभव न आने दें। -
जौ चाहत, चटकन घटे, मैलौ होइ न मित्त। रज राजसु न छुवाइ तौ, नेह-चीकन चित्त॥
कहीं-कहीं रिश्तेदारी को भी मित्रता कहा जाता है। असल में वह भी मित्रता ही तो है। मित्रता को लेकर संस्कृत के दो श्लोक इस तरह से हैं-
कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:। अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥ ...
जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥ .
इस तरह शुरू हुआ इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे
इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक फ्रेंडशिप डे की शुरुआत वर्ष 1930 से 1935 के बीच अमेरिका से हुई थी। कहानी के मुताबिक एक व्यापारी ने इस दिन की शुरुआत की थी। जोएस हाल नाम के इस व्यापारी ने सभी लोगों को बधाई देने का सिलसिला शुरू किया। कहा जाता है कि इस खास दिन को मनाने के लिए उस व्यापारी ने 2 अगस्त के दिन को चुना था। बाद में यूरोप और एशिया के बहुत से देशों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। दुनियाभर के अलग-अलग देशों में फ्रेंडशिप डे अलग-अलग दिन मनाया जाता है। 27 अप्रैल 2011 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा ने 30 जुलाई को आधिकारिक तौर पर इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे घोषित किया था। हालांकि, भारत सहित कई दक्षिण एशियाई देशों में अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। ओहायो के ओर्बलिन में 8 अप्रैल को फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। इस बार फ्रेंडशिप डे पहली अगस्त को है। सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं। Happy friendship day.
1 comment:
बेहतरीन विवेचना
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