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Sunday, October 15, 2023

पुण्य लूटने की नहीं, कमाने की मचे होड़

केवल तिवारी

पितृ पक्ष के तुरंत बाद नवरात्रि पर्व की शुरुआत हो चुकी है। मंदिर बहुत सुंदर तरीके से सजे हैं। श्रद्धालु भजन-कीर्तन में लीन हैं। अच्छी बात है कि धार्मिक गतिविधियां किसी भी व्यक्ति को गलत दिशा में जाने से रोकती हैं। आप कहीं भजन-कीर्तन में शामिल होते हों, कहीं सत्संग के लिए जाते हों या ऐसे ही किसी अन्य 'वास्तविक धार्मिक कार्यक्रम' में आप अच्छी बात ही सीखेंगे। लेकिन कई बार धार्मिक अनुष्ठानों या ऐसे ही किसी रीति रिवाज के दौरान अनेक लोगों में पुण्य लूटने की होड़ मचते देखता हूं तो अवाक रह जाता हूं। पहले एक किस्सा फिर बात का समापन कुछ ज्ञान की बातों से। वैसे ज्ञान तो इन दिनों सोशल मीडिया पर बिखरा पड़ा है। कुछ कच्चा, कुछ अधपका सा। कुछ-कुछ असरदार भी।




नवरात्र के पहले दिन किसी काम से चंडीगढ़ के पास स्थित मोहाली गया था। वापसी में राह दूसरी पकड़ ली। विकास मार्ग है उसका नाम। एक जगह चौराहे पर काम चल रहा था, इसलिए उसे बंद किया गया था। मुझे अगले चौक से यूटर्न लेना था। वहां कोई गौशाला थी। भयानक भीड़। कोई ट्रैफिक कर्मी भी नहीं और लालबत्ती भी खराब। अनेक लोग आड़े-तिरछे चल रहे थे। कुछ लोग बुदबुदा भी रहे थे। दो-तीन लोगों में तकरार भी हुई। कुछ समझदार लोगों ने मामले को शांत करवाया। धीरे-धीरे आगे बढ़ा, पता चला कि श्राद्ध यानी पितृ पक्ष का अंतिम दिन है। यहां गौशाला में लोग गाय को घर में तैयार पकवान खिलाने के लिए आए हुए हैं। बहुत भीड़ है। गाड़ियां बेतरतीब ढंग से लगी हैं। ज्यादातर लोग आज पुण्य लूट लेना चाहते हैं। कल से तो पितृपक्ष समाप्त हो जाएगा। फिर कैसे अपने पूर्वजों को खुश कर पाएंगे। मैं यही सोचता हूं कि इन सब धार्मिक नियम कर्मों के असली मर्म को कुछ लोग क्यों नहीं समझ पाते। पितृपक्ष के असल संदेश को हम क्यों नहीं बता पाते। बड़ों के सम्मान की नींव तो हर समय रखी जानी चाहिए। जड़ों की जानकारी तो हर किसी को होनी चाहिए। गायों या अन्य पशुओं को चारे या भोजन की जरूरत तो हमेशा होती है। कौए तो पर्यावरण संतुलन के वाहक हैं। अन्य पक्षियों की चिंता भी तो हमेशा होनी चाहिए। 

तस्वीर पूरी तरह स्याह भी नहीं

उपरोक्त विवरण से यह अंदाजा बिल्कुल मत लगाइए कि तस्वीर पूरी तरह स्याह है। ऐसा हो भी नहीं सकता। कोई पक्ष निर्धारित है तो उसकी पालना भी अवश्यंभावी है। मौसम के संधिकाल में नवरात्र होते हैं तो तभी व्रत रखे जाएंगे। इन सबसे इतर आज अनेक लोग हैं जो अपनी शादी की वर्षगांठ, बच्चों का जन्मदिन कुष्ठाश्रम या अनाथालय में मनाते हैं। कुछ लोग सार्थक संस्थाओं को दान देते हैं। पितृपक्ष में भी बड़े बड़े धार्मिक स्थलों की यात्रा करते हैं। गुरुद्वारों में तो हमेशा लंगर लगता है। अनेक मंदिरों में भी बिना भेदभाव भोजन की व्यवस्था होती है। गुप्त दान होता है। किसी पर कुदृष्टि नहीं डालें, किसी को दुख पहुंचाने का भाव भी नहीं रखें। यही तो है पुण्य कमाना। पुण्य लूटने से नहीं मिलेगा। यह तो कमाई करके ही मिलेगा। और यह कमाई कुछ गंवाने से मिलेगा। अहंकार गंवाना होगा। कमाई का एक हिस्सा गंवाना होगा। इगो को खत्म करना होगा। बातें सामान्य हैं, सब जानते भी हैं। सोशल मीडिया पर तो ज्ञान का भंडार है। कुछ कुछ सीखना होगा। इस ज्ञान के संसार और अपनी परंपराओं से एकाध अंश भी सीख पाए तो बहुत है। हमें अच्छे भाव की तरह सोच भी अच्छी रखनी होगी। कोशिश तो करनी ही चाहिए। अंत में सरदार पूर्ण सिंह जी का वाक्य कि आचरण की सभ्यतामय भाषा सदा मौन रहती है।

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