केवल तिवारी
वर्ष 2024 में हुए 18वीं लोकसभा चुनाव में विपक्षी पार्टियों के गठबंधन 'इंडिया' ने 'संविधान' को मुख्य मुद्दा बनाया। संविधान खतरे में है, आरक्षण खतरे में है जैसे विमर्श गढ़े गये। इसका कितना फायदा हुआ यह तो राजनीति के पंडित ही बता सकते हैं, लेकिन इस आम चुनाव के बाद संविधान शब्द खूब प्रचलन में आया है। सत्ता पक्ष भी इसको लेकर सजग दिखती है और आयेदिन कई कार्यक्रम इसको लेकर करती है। इन सबके बीच यह बात भी महत्वपूर्ण है कि भावना यही होनी चाहिए कि राष्ट्र प्रथम। देश को ही सर्वोपरि रखा जाना चाहिए।
संयोग से इसी बीच, 26 नवंबर को संविधान दिवस आ गया। संविधान को बने 75 साल हो गये। बेशक हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते हैं, लेकिन संविधान सभा ने 26 नवंबर की तारीख को लिखित संविधान को अपनाया था। बताया जाता है कि कुल 274 सदस्यों ने 167 दिनों तक बहस की और लगभग 36 लाख शब्द संविधान में समाहित किए गए। इस तरह दुनिया के सबसे लंबे लिखित भारतीय संविधान का स्वरूप सामने आया। कहा जाता है कि संविधान के हर अनुच्छेद पर संविधान सभा के सदस्यों ने बहस की। यह तो ज्ञात ही है कि संविधान निर्माण में दो साल, 11 महीने और 18 दिन लगे। संविधान के मुख्य वार्ताकार माने जाने वाले बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर को उनकी अध्यक्षता वाली मसौदा समिति के सदस्यों ने सहायता प्रदान की थी। भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद 75 साल पहले इस ऐतिहासिक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति थे। यह दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है और इसका पहला संस्करण न तो मुद्रित किया गया था और न ही टाइप किया गया था। इसे हिंदी और अंग्रेजी दोनों में हाथ से सुलेख के रूप में लिखा गया था। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक संविधान की पांडुलिपि प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने हाथ से लिखी थी और देहरादून में उनके द्वारा प्रकाशित की गई थी। हर पृष्ठ को शांति निकेतन के कलाकारों ने सजाया था, जिसमें बेहर राममनोहर सिन्हा और नंदलाल बोस शामिल थे। भारत के संविधान में फिलवक्त 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं। संविधान में अब तक 106 बार संशोधन किया जा चुका है। संविधान सभा ने नवंबर 1948 से अक्तूबर 1949 तक, संविधान के प्रारूप पर खंड-दर-खंड चर्चा के लिए बैठकें कीं। इस अवधि के दौरान सदस्यों ने 101 दिनों तक बैठकें कीं। संविधान के मसौदे के भाग-तीन में मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया और इस पर 16 दिनों तक चर्चा हुई थी। कुल खंड-दर-खंड चर्चाओं में से 14 प्रतिशत मौलिक अधिकारों के लिए समर्पित थी। राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को भाग-चार में शामिल किया गया था और इस पर छह दिनों तक चर्चा हुई थी। खंड-दर-खंड चर्चा का चार प्रतिशत निर्देशक सिद्धांतों के लिए समर्पित था। नागरिकता से संबंधित प्रावधानों को भाग-दो में शामिल किया गया था। इस भाग पर चर्चा का दो प्रतिशत समर्पित था। छह सदस्यों ने एक लाख से अधिक शब्द बोले। आंबेडकर ने 2.67 लाख से अधिक शब्दों का योगदान दिया। संविधान सभा के सदस्य, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 73,804 शब्द बोले। मसौदा समिति ने संवैधानिक सलाहकार बीएन राव द्वारा बनाए गए मसौदे की पड़ताल की और उसमें संशोधन किया तथा इसे सभा के समक्ष विचार के लिए प्रस्तुत किया। समिति के सदस्यों ने चर्चा के दौरान अन्य सदस्यों द्वारा की गई टिप्पणियों पर अक्सर प्रतिक्रिया दी। कुछ वैसे सदस्य जो मसौदा समिति का हिस्सा नहीं थे, (फिर भी) उन्होंने संविधान सभा की बहसों में व्यापक रूप से भाग लिया। ऐसे पांच सदस्यों ने एक-एक लाख से ज्यादा शब्दों का योगदान किया। संविधान सभा के पूरे कार्यकाल के दौरान पंद्रह महिलाएं इसका हिस्सा थीं। उनमें से 10 ने बहस में भाग लिया और चर्चाओं में दो प्रतिशत का योगदान दिया। महिलाओं में सबसे ज्यादा भागीदारी जी. दुर्गाबाई ने की, जिन्होंने लगभग 23,000 शब्दों का योगदान किया। उन्होंने बहस के दौरान न्यायपालिका पर विस्तार से बात की। अम्मू स्वामीनाथन, बेगम ऐजाज रसूल और दक्ष्याणी वेलायुधन ने मौलिक अधिकारों पर बहस में भाग लिया। हंसा मेहता और रेणुका रे ने महिलाओं के लिए न्याय से संबंधित बहस में हिस्सा लिया। दिलचस्प बात यह है कि संविधान सभा की बहसों में प्रांतों के सदस्यों ने 85 प्रतिशत योगदान दिया। संविधान सभा में प्रांतों से चुने गए 210 सदस्यों और रियासतों द्वारा मनोनीत 64 सदस्यों ने चर्चा में हिस्सा लिया। औसतन, प्रांतों के प्रत्येक सदस्य ने 14,817 शब्द और रियासतों के एक सदस्य ने 3,367 शब्द बोले। पीठासीन अधिकारियों द्वारा दिए गए भाषणों और हस्तक्षेपों ने चर्चाओं में नौ प्रतिशत का योगदान दिया। संविधान सभा की पहली बैठक नौ दिसंबर, 1946 को दिल्ली में ‘संविधान सदन' में हुई। इसे पुराने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के रूप में भी जाना जाता है। सदस्य राष्ट्रपति के मंच के सामने अर्धवृत्ताकार पंक्तियों में बैठे थे। अगली पंक्ति में बैठने वालों में नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, आचार्य जेबी कृपलानी, प्रसाद, सरोजिनी नायडू, हरे-कृष्ण महताब, गोविंद बल्लभ पंत, आंबेडकर, शरत चंद्र बोस, सी. राजगोपालाचारी और एम. आसफ अली थे। नौ महिलाओं सहित दो सौ सात प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। भारत के संविधान के कुछ धाराओं पर कई बार बहस-मुबाहिशें भी होती रही हैं। कुछ पुराने कानूनों को हटाने की कवायदें भी हो चुकी हैं। संविधान में परिवर्तन के भी अलग-अलग मानक हैं। जितने महत्व का आर्टिकल, उसके संशोधन को उतना ही क्लिष्ट बनाया गया। कुछ प्रावधानों को कुछ ही समय के लिए रखा गया जिन्हें कालांतर में बढ़ाया ही गया। आरक्षण का मामला इनमें से एक है। तो संविधान को लेकर कुछ तथ्यों को इधर-उधर से जुटाकर आपके सामने रखा है। आशा है काम आएगा।
1 comment:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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