केवल तिवारी
जिंदगी से इश्क हुआ है मुझे, जीने की बढ़ी है ललक।
कितना तो भागा-दौड़ा, अब खुद की देखनी है झलक।
बहुत देखी दुनिया और दुनियादारी अब झपकेगी पलक।
थोड़ा बोलना, ज्यादा सुनना, कहीं नैन न जाएं छलक।
चलो बाहें फैलाएं, सबको अपनाएं क्या करना फरक।
खुशियां समेटें सारे जहां की, यहीं स्वर्ग, यहीं नरक।
आती हैं याद पुरानी बातें, पर क्यों हम जाएं बहक।
चलो कि जीयें जिंदगी, भूल जायें जो रह गईं कसक।
चंद लम्हों की जिंदगी और ढेर सारे हैं ग़म
उनकी सुनें, अपनी कहें और मुस्कुराएं हरदम।
यह महज काव्य नहीं, जीवन की है एक तान।
मिलते जुलते रहें और जारी रहे यह मधुर मुस्कान।
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