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Saturday, January 17, 2009

इस दुनिया में

इस दुनिया में कितने किस्म के लोग नहीं मिले या मिलते जा रहे हैं। क्यों हर चेहरा संदिग्ध सा लगता है। कुछ लोग आपके साथ बैठते हैं चीजें शेयर करते हैं फ़िर इस वादे के हम लोगों के बीच कोई शोले फ़िल्म का हरिराम नाई न बने। पर ये क्या दूसरे ही दिन उन्ही लोगों में से कोई सबकुछ उगल चुका होता है बदहजमी के कारण या साजिश के चलते
जब मैंने करीब १० साल पहले दैनिक जागरण ज्वाइन किया था तो कुछ दिनों बाद ही हर चेहरे पर कुटिलता सी दिखती थी हिंदुस्तान गया तो बहुत समय तक वहां doyam दर्जे की नागरिकता के हालत में रहना पड़ा किसी तरह सामान्य रहा मुझे एक स्तर तक पसंद किया gayaa धीरे धीरे लोगों ने recognise किया। एक बार vo समय भी आया yes केवल बढ़िया कम करने wala और कराने wala है। कुछ समय बाद फ़िर एक अजीब stithi आयी ujhse एक बहुत senior व्यक्ति ने एक बात कही लेकिन बात कही बहुत imandaari से। vo ये की केवल तुम अच्छे व्यक्ति हो, काम अच्छा करते हो per एक कमी है की तुम आगे बढ़ने के सारे gur नहीं jante हो। एक दो लोगों का example दिया गया। फ़िर उन्होंने ही joda की हाँ तुम में उस सब के gats भी नहीं हैं। अब नाई dunia में हूँ कभी कुछ कभी कुछ लगता है। यहाँ बात पूरी करने से एक बात और कहना chata हूँ की मेरे साथ हमेशा यह हुआ की मुझे कुछ manane में कुछ लोग बहुत देरी करते हैं। चार jankaron के साथ एक ajnabi होगा to शायद voh अन्य लोगों की apeksha मुझसे उतनी बात न करे लेकिन इतना तय है की में पाँच ६ line बोल दूँगा to फ़िर vo मुझसे ही बात करेगा। कई बार यह भी होता है की आप होते कुछ हैं और आपको बताया कुछ और जाता है। कुछ कुछ ऐसा ही mahsoos कर रहा हूँ, एक और feeling हो रही है की मुझे jatate हुए ignore feel karaya ja रहा है। लेकिन utna ranj नहीं क्योंकि में काम के प्रति imandaar हूँ। prasangsah याद आ गया की एक बार kahin हिंदुस्तान के crime reporter और एक varishth adhikaari बैठे थे। में भी था। aadatan में काफ़ी देर तक chup baitha रहा जब bola to agali बार से जब भी vo akele बैठे to मुझे याद किया गया, कभी कभी to बुलाने तक की jid हुई। खैर चल चला चल अकेला चल चला चल.

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