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Thursday, November 5, 2020

इस खुशी को क्या नाम दूं...

केवल तिवारी 1. उदास चेहरा लिये पार्क में अक्सर बैठा रहने वाला शोभित आज खुश था। पार्क का चक्कर तो वह आज भी लगा के आ गया, लेकिन आज उसने उदासी को खुद पर हावी नहीं होने दिया। ऐसा उसे कई मौकों पर होता था। एक तब, जब बेंगलुरू रह रहे अपने भाई से बात कर लेता या फिर वह घर आता था। इसके अलावा जब उसकी दीदी मायके आती तब भी वह बहुत खुश होता था। आज दीदी आने वाली थी। रांची शताब्दी से। दिल्ली में पली-बढ़ी उसकी बहन स्नेहा शादी के बाद रांची चली गयी थी। कोरोना महामारी के दौरान रांची से वह दिल्ली आये कि नहीं, इस पर असमंजस बना हुआ था। पहले स्नेहा ने ही फोन पर कहा कि आ रही हूं, फिर पता नहीं क्या बात हुई, खुद ही कहने लगी रहने देते हैं माहौल खराब है। जब मम्मी-पापा, भाई ने कहा कि आ जाओ कोई बात नहीं तो फिर आने का कार्यक्रम बना लिया। हालांकि शायद यह पहली बार था जब वह पति और बच्चों के बगैर आ रही थी। स्नेहा की बिटिया 10वीं में पढ़ती है, बेटा आठवीं में। पति ने ही समझाया कि बच्चों को दादा-दादी के पास ही रहने दो, बाद में हो आएंगे। मौका रक्षा बंधन का था और स्नेहा पिछले तीन सालों से मायके नहीं आ पायी थी। इस बार मार्च में बच्चों की छुट्टियों के बाद कार्यक्रम बना तो लॉकडाउन हो गया। अब अनलॉक की प्रक्रिया के दौरान कुछ ट्रेनें चलीं तो स्नेहा का मन बहुत व्याकुल हो गया। असल में स्नेहा के पिता मधुरेंद्र सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके हैं। मां थोड़ा अस्वस्थ रहती हैं। छोटे भाई शोभित की कहीं नौकरी नहीं लग पाई। बस कभी कहीं छोटी-मोटी नौकरी मिलती भी है तो शोभित वहां टिक नहीं पाता। बड़ा भाई राकेश पढ़ने में ठीक था। बीटेक करते ही बेंगलुरू में नौकरी लग गयी। वह सपाट सा है। स्नेहा से फोन कर उसने कह दिया अभी जाने की क्या जरूरत है। वह बात खरी करता है, लेकिन उसकी बात का कुछ लोग बुरा मान जाते हैं। हालांकि उसे इस बात की परवाह नहीं कि उसकी बात का बुरा माना जा रहा है या भला। शोभित उसे फोन पर खूब चाटता है। राकेश कभी-कभी शोभित के लिए पैसे भी भेज देता है। वह डांटता भी है तो शोभित बुरा नहीं मानता। लो जी स्नेहा आ गयी। शोभित चला गया लेने। स्टेशन से जैसे ही स्नेहा बाहर को आती दिखी, शोभित भागकर गया और अपनी दीदी का बैग ले लिया। स्नेहा ने उसे बैग थमाया और जोर से उसकी नाक खींच दी। ‘नाक को इतनी जोर से खींच दिया दीदी... आह’ शोभित चिल्लाया। ‘पहले मेरे पैर क्यों नहीं छुए,’ ‘स्नेहा ने सवाल किया।’ ‘सोशल डिस्टेंसिंग दीदी,’ शोभित बोला और दोनों पहले से बुक करके लायी गयी कैब की ओर चल दिये। आज शोभित के घर में अजब उत्साह था। मां भी जैसे भली-चंगी हो गयी। मधुरेंद्र भी बेहद खुश थे और सबसे ज्यादा चहक रहा था शोभित। हर कोई इस खुशी को समझ रहा था। लेकिन शोभित के समझ में नहीं आ रहा था कि इस खुशी को वह क्या नाम दे। 2. ‘भाई तूने अच्छा किया जो अलग रहने लग गया,’ मनीष ने यह बात अपने भाई मनन से कही। मनीष और मनन अभी नये-नये जवान हुए हैं। दोनों जुड़वां हैं। मनन को एक छोटी-मोटी जॉब क्या मिली वह आफिस और घर की दूरी का बहाना बनाकर मां-बाप से अलग रहने लगा। पता नहीं परवरिश में रह गयी कोई कमी है या फिर संगत का असर दोनों भाइयों की अपने माता-पिता से नहीं बनती। मां के प्रति तो प्रेम कभी उमड़ भी जाता है, लेकिन पिता के प्रति नहीं। उन्हें लगता है कि पिता हमेशा टोकाटाकी करते रहते हैं। वैसे उनके पिता इंद्रमोहन भी टोकाटाकी कुछ ज्यादा ही करते हैं। ‘निकल जाओ मेरे घर से’ जैसा डॉयलॉग तो वह एक दिन में एक-दो बार दोहरा ही देते हैं। असल में उन्हें लगता है कि बच्चे उनके हिसाब से पढ़-लिख नहीं पाये, जबकि बच्चे कहते हैं कि उनका जहां अलग है। मनीष एक्टिंग में हाथ आजमाना चाहता है और मनन संगीत में। हालांकि अपनी पसंद की फील्ड में भी दोनों कुछ खास कर नहीं पाये। उनकी मां ममता बिल्कुल आदर्श गृहिणी हैं। कभी पति की सुनती है और कभी बेटों की। अब मनन अलग रहने लगा तो मां को लगा कि ऑफिस से दूरी होगी ही इसीलिए अलग रहने लगा है। घर में भले ही खटपट हो लेकिन अजीब बात है कि मनीष और मनन कभी लड़ते नहीं, उल्टे एक दूसरे के पक्के दोस्त बनकर रहते हैं। मनन ने मनीष के लिए एक एक्टिंग स्कूल में बात की है। अगले हफ्ते से वह जाएगा। फीस मनन चुकाएगा। मनीष आज बहुत खुश है। अपने स्वभाव के अनुकूल वह फिलहाल आगे की नहीं सोच रहा है, बस एक्टिंग स्कूल में जाने को बेताब है। वह घर में इधर-उधर घूम रहा है, प्रसन्न है। उसके पिता भी यह सोचकर खुश हैं कि दूसरे बेटे ने अपने लिए नौकरी और ठीया ढूंढ़ लिया है, मां तो बेचारी सबके खुश रहने पर ही खुश है। सब खुश हैं, लेकिन किसी के समझ नहीं आ रहा है कि इस खुशी को क्या नाम दें। 3. मिसेज रजनी कृष्ण को तो बस अब कुछ दिन तक अलग तरह का भोजन बनाने, अचार बनाने और पाचक नमक तैयार करने में ही मजा आएगा। बेटा राजीव जो आया है। वैसे बेटे की कोई फरमाइशें नहीं रहतीं। वह तो बस मम्मी के हाथ का बना साधारण खाना ही पसंद करता है। बचपन से ही ऐसा है। उसे मम्मी के हाथ का बना अचार, खासतौर से तैयार किया पाचक नमक जिसमें उसकी मां जीरा, हींग, आजवाइन, सरसों के दाने, लौंग, काली मिर्च और काला नमक बनाकर तैयार करती है, जैसी चीजें पसंद हैं। हां बचपन से उसे आलू के पराठे दही के साथ बहुत अच्छे लगते हैं। एक हफ्ते के लिए आया है राजीव। अनेक मित्रों से मिलने भी जाना है। कुछ खाने की भी जिद करेंगे, लेकिन रजनी कृष्ण जी हैं कि मन कर रहा है कि सातों दिन बेटा उसी के हाथ से खाना खाये। बचपन से धीर-गंभीर राजीव ने पढ़ाई की और पढ़ाई पूरी होते ही हैदराबाद की एक कंपनी में लग गया। पूरे डेढ़ साल बाद आया है मेरठ स्थित अपने घर। मेरठ उनका मूल निवास नहीं है, लेकिन राजीव के पापा की जॉब के चलते यहीं घर बना लिया और यहीं के होकर रह गये। पापा भी रिटायर हो गये हैं। राजीव के आने पर बेहद खुश हैं। उनका मन तो बस राजीव से बातें ही करते रहने का होता है। रजनी जी तो इन दिनों सब भूलकर बस बेटे के लिए व्यंजन बनाने की विधि सीखने में ही मशगूल है। उनका मन कर रहा है कि कई चीजें बनाकर राजीव के लिए तैयार कर दें। कुछ रोज खाने को और कुछ ले जाने को। वह बहुत खुश हैं। खुश उनके पति भी हैं। हालांकि इस खुशी को कोई कुछ नाम नहीं दे पा रहा है। 4. आज तुम्हारा ऑफ है इसलिए मूड को ऑन रखो। खाने में क्या-क्या बनाऊं बताओ। गणेश कुमार की पत्नी रेखा ने सुबह की चाय के वक्त सवाल किया। अरे जो बच्चों को पसंद आये बना दो, मैं क्या खास बताऊं, गणेश ने अखबार पर नजर डालते हुए कहा। रेखा बोली, कभी तो अपनी पसंद बता दिया करो। गणेश कुमार ने अखबार किनारे रखा और मोबाइल में कुछ देखने लगे। रेखा ने पूछ लिया क्या ऑनलाइन सर्च कर रहे हो। गणेश मुस्कुराया नहीं पति-पत्नी पर खाने के संबंध में बने एक जोक किसी ने भेजा था, वही देख रहा था फिर खुद ही हंसने लग गया। रेखा उठकर चली गयी। असल में गणेश कुमार बेहद सरल व्यक्ति हैं। खाने-पीने की कोई खास फरमाइश नहीं। बच्चों की पसंद में ही उनकी पसंद है। हालांकि रेखा ने उनकी कुछ-कुछ पसंद पर गौर किया है और गाहे ब गाहे वह ऐसी चीजें बना दिया करती है, लेकिन उसकी इच्छा होती है कि पति कभी-कभी फरमाइश किया करे। हां, बच्चों की पसंद पर बेशक वह अक्सर बनाती रहती हैं, लेकिन सख्ती के साथ। जैसे हर समय तला-भुना नहीं, कई बार बिना पसंद के भी खाना पड़ेगा, वगैरह-वगैरह। आज गणेश कुमार के मन में आया कुछ बता ही दिया जाये। वह भी उठकर रेखा के पीछे किचन में चले गये और नाश्ते से लेकर डिनर तक के तीन-चार चीजें बना दीं। उसमें लंच बच्चों की पसंद का था। फिर क्या था रेखा आज बहुत खुश है। बाहर बूंदाबांदी हो रही है। इससे उमस बढ़ गयी है। बच्चे उठकर अपने-अपने काम में लग गये हैं, गणेश कुमार भी कुछ किताबों में सिर खपाये बैठे हैं, कभी टीवी भी देखने को उठ जाते हैं। रेखा है कि बहुत खुश है, पति ने फरमाइश तो की। हालांकि रेखा के समझ नहीं आ रहा है कि इस खुशी को वह क्या नाम दे। गणेश कुमार भी तो नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर रेखा आज इतनी क्यों खुश नजर आ रही है, जबकि काम का प्रेशर ज्यादा है। उक्त सभी किरदारों पर गौर करते हुए सवाल उठना लाजिमी है कि इस खुशी को क्या नाम दूं। शोभित का बहन के आने का इंतजार करना, मनन का अपने भाई मनीष को एक्टिंग स्कूल में भेजना, रजनी कृष्ण का बेटे राजीव के लिए खाना बनाना, रेखा का गणेश की फरमाइश पर इतराना। आखिर ये कौन सी खुशी है। इसका कोई तो नाम हो। शायद यह अनाम खुशी ही सबसे अनमोल है। क्या आपको भी होती है ऐसी अनाम खुशी...।

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