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Sunday, November 15, 2020

अब क्या गायें और क्या सुनायें... चले गये दिनेश तिवारी जी

केवल तिवारी 

एक आसूं भी न निकल पाया जो उनके चले जाने की खबर सुनी। 
न खबर पे यकीन हुआ न बातों पर जाने कितनी कहानियां थी बुनीं 
वो बातें, वो मुलाकातें और लिखने-पढ़ने की वो योजनाएं। 
कुछ दिनों से वे मौन थे, अब क्या गायें और क्या सुनाएं।

हम एक-दूसरे को करीब 20 सालों से जानते थे। अनौपचारिक बातचीत शुरू हुई साल 2013 से। मेरे चंडीगढ़ आने के बाद। वो भी चंडीगढ़ दो-तीन बार आये। हम लोग घंटों साथ रहे। कभी मित्र मंडली की बात करते तो कभी कुछ लेखन की। इस लॉकडाउन से पहले हमारी योजना थी हिमाचल प्रदेश के पालमपुर जाने की। चंडीगढ़ प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष जसवंत सिंह राणा जी के सान्निध्य में बनी थी योजना। उनकी और राणा जी की भी अच्छी मित्रता हो गयी थी। मैं कभी दिल्ली जाता तो उनसे रीगल सिनेमा के पास कॉफी हाउस में या फिर प्रेस क्लब में मुलाकात होती। कुछ समय से वह योग, ध्यान पर काफी जोर देने लगे थे। लेकिन अचानक यह चैप्टर खत्म हो गया। बात कर रहा हूं वरिष्ठ पत्रकार और मुझे छोटा भाई जैसा मानने वाले दिनेश तिवारी जी की। इंडियन प्रेस क्लब के पूर्व उपाध्यक्ष एवं दैनिक हिंदुस्तान में एसोसिएट एडिटर रहे दिनेश तिवारी। दिवाली के दिन मनहूस खबर आई उनके चले जाने की। पिछली दिवाली और यह दिवाली बहुत अजीब सी रही। पिछली दिवाली मेरी बड़ी दीदी चल बसी थीं। इस बार भी दिवाली की पहली रात से मेरी पत्नी की तबीयत बहुत खराब हो गयी। तेज बुखार और बदन दर्द। कोरोना के इस खौफनाक माहौल में अजीब-अजीब लग रहा था। सुबह उठा बच्चों को उठाया। छोटा बेटा रोना लगा, बोला त्योहार पर मम्मा बीमार हो गयीं, अजीब लग रहा है। बड़े बेटे ने नाश्ता बनाया, मैंने घर की साफ-सफाई की। किसी को दिवाली विश करने का भी मन नहीं हो रहा था। 10 बजे तक पत्नी की तबीयत थोड़ी ठीक हुई, तब तक मैं डॉक्टर से भी बात कर चुका था और अस्पताल जाने की तैयारी कर रहा था। इसी बीच मैंने दो-चार व्हाट्सएप ग्रूप पर बधाई के संदेश भेज दिये। डॉक्टर के यहां से लौटकर पत्नी को एक डोज दवा देकर चाय बनाई और बच्चों से कहा कि चलो त्योहार की तैयारी करो। मम्मा अब ठीक हो जाएंगी।
दो साल पहले चंडीगढ़ लेक क्लब में दिनेश तिवारी जी के साथ की एक तस्वीर।
करीब साढ़े ग्यारह बजे मित्र फजले गुफरान का फोन आया। बड़े बेमन से उन्होंने दिवाली की बधाई दी। मैंने पूछा सब खैरियत तो है, बोले-क्या खैरियत है, कोई अच्छी खबर नहीं आ रही है। हर जगह से बुरी खबर ही आ रही है। मैंने कहा, ‘क्या हुआ?’ बोले-क्या बताऊं, दिनेश तिवारी जी नहीं रहे। मैं सन्न रह गया। कैसे, कहां जैसे तमाम सवाल हुए। उनसे बात करने के बाद मैंने व्हाट्सएप ग्रूप चेक किए। एक ग्रूप में दिवाकर जी का मैसेज था। फिर उसमें प्रमोद जोशी जी और प्रदीप सौरभ जी का भी मैसेज आ गया। दुर्भाग्य से यह खबर सच थी। लोग कह रहे थे फेसबुक पर कई लोगों ने टिप्पणियां की हैं। चूंकि मैंने लंबे समय से फेसबुक बंद कर रखा है, इसलिए कुछ जानकारों से बातचीत हुई। इस बीच तमाम लोगों के दिवाली बधाई के संदेश भी आये, कुछ के फोन भी आये, लेकिन मन उचाट सा रहा। पिछले साल तिवारी जी चंडीगढ़ आये थे। प्लान बना कि मार्च या अप्रैल में पालमपुर चलेंगे। जसवंत राणा जी ने कहा कि वहां एक-दो खूबसूरत लोकेशन हैं, वहां चलेंगे। कुछ लिखने-पढ़ने का भी मैटर मिलेगा। इस बीच, लॉकडाउन हो गया। कोरोना का खौफ पसर गया। बस फोन पर ही बात होती। मैं कई बार फोन नहीं भी कर पाता था, दिनेश जी का 20 या 25 दिनों के अंतराल में कोई व्हाट्सएप मैसेज या फोन आ जाता था। लेकिन इस बार 25 अक्तूबर से उनसे कोई बात नहीं हुई थी। मुझे लगा शायद कानपुर गये होंगे। या फिर अपनी पत्रिका में व्यस्त होंगे। वो इन दिनों उन लोगों को कोसते थे जो बेवजह लड़ते-झगड़ते या बैर पालते हैं। उनका कहना था कि आदमी कुछ बुरा-भला कहने या करने या लालच करने से पहले अपनी उम्र के बारे में सोच ले। कितना और जीयेगा। क्यों न सबको साथ लेकर चला जाये। उनको कई कविताएं कंठस्थ थीं। पुराने गीतों के बड़े शौकीन थे। कई बार मुझे भी लिंक भेजते थे। जब हिन्दुस्तान में वह नयी दिशाएं सप्लीमेंट निकालते थे तो कभी-कबार लिखने के लिए कहते थे, बस इतनी ही बात होती थी। इधर अब उनसे अक्सर ही बात होने लगती थी। इस बीच, बस यही कहते, दिल्ली आने का प्लान बने तो बताना। न वो चंडीगढ़ आये, न मैं दिल्ली जा पाया। और न ही करीब एक महीने से बात हुई। कुछ भी नहीं हुआ, वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था, पर उस सफर पर किसी को जाने से कौन रोक सकता है। भगवान दिनेश जी की आत्मा को शांति दे। मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

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