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Tuesday, December 14, 2021

वह चार एक्सीडेंट और करता, फिर भी कुछ नहीं होता

 केवल तिवारी



कभी-कभी फिल्मों या सीरियल्स में दिखाते हैं कि कोई व्यक्ति एक्सीडेंट के बाद भाग जाता है तो थोड़ी देर में ही 'अलर्ट पुलिसिंग व्यवस्था' उसे पकड़ लेती है और फिर कानून के दायरे में जो होता है, सही होता है। लेकिन फिल्मी सीन तो फिल्मी ही होते हैं, असल जिंदगी में ऐसा कहां होता है? आपकी शिकायत ही पुलिस सुन ले, यही बहुत है। वह भी तब जब आपने तमाम प्रयास किए हों। बात रविवार 12 दिसंबर, 2021 के शाम की है। मैं दिल्ली गया था। बेटा कार्तिक अपने मामा भास्कर जोशी के पास था। मेट्रो से लौट रहा था तो भास्कर का फोन आया कि जब मोहन एस्टेट स्टेशन पर पहुंच जाएंगे तो फोन कर देना और सराय स्टेशन पर उतरना, मैं लेने आ जाऊंगा। एक बारगी मैंने कहा कि परेशान मत होओ मैं ऑटो से आ जाऊंगा, लेकिन वह नहीं माने। मानना भी कैसा? कोई भी होता तो ऐसा ही करता अगर समय है तो। हमारे यहां कोई आए और मैं बहुत व्यस्त नहीं हूं तो शायद ऐसा ही करूं। शाम करीब सवा सात बजे भास्कर फरीदाबाद में ग्रीन फील्ड कालोनी से अपनी वैगनआर कार (नंबर HR51AU10312) से मुझे लेने सराय स्टेशन पर आ गए। गाड़ी की पार्किंग लाइट ऑन कर उन्होंने हैंड ब्रेक उठाया ही था कि पीछे से एक मारुति स्विफ्ट डिजायर गाड़ी (नंबर DL3CAU4759 - यह नंबर वहां आसपास लोगों ने बताया क्योंकि भास्कर कुछ पल के लिए तो समझ ही नहीं पाए कि हुआ क्या?) तेज रफ्तार में आई और भास्कर की कार पर इतनी जोरदार टक्कर मारी कि पीछे का बंपर, लाइट सभी फूट गए और हैंड ब्रेक में खड़ी गाड़ी तेजी से आगे बढ़ी और वहीं किसी रिश्तेदार को लेने आए एक अन्य सज्जन की गाड़ी से टकराई। इस क्रम में भास्कर की गाड़ी का बोनट आदि भी क्षतिग्रस्त हो गया। जिस गाड़ी ने टक्कर मारी उसने तुरंत गाड़ी बैक की और वह भाग गया। लोगों ने बताया कि वह नशे में धुत लग रहा था। उसी वक्त मैं वहां पहुंच गया। सारा माजरा समझने के बाद हमने कोशिश की कि पहले पुलिस को सूचना दे दें ताकि वह आगे कोई एक्सीडेंट न कर पाए। चूंकि भास्कर ठीक से चल भी नहीं पा रहे थे, जोर का झटका लगने से पैर और पीठ में चंक पड़ गया था। 100 नंबर पर बहुत देर तक ट्राई करते रहे, फोन नहीं लगा। तभी मैंने अपने अखबार के रिपोर्टर राजेश शर्मा जी को फोन लगाया। उन्होंने बताया कि उन्होंने सराय थाने के एसएचओ साहब से कह दिया है। इस बीच किसी तरह पुलिस से संपर्क हुआ। एक पीसीआर वैन आई और उसमें मौजूद पुलिसवाले बोले-गाड़ी लेकर थाने आ जाओ। मैंने कहा कि भाई ये नंबर लोगों ने बताया है कोई ऐसी प्रणाली नहीं है कि आप दिल्ली पुलिस को सूचित कर दो ताकि वह कहीं ट्रेश हो जाए। पुलिसवाले ने कहा आप बच गए, भगवान का शुक्र है। आप थाने आ जाओ। पुलिसवाले तो चले गए, लेकिन हमारी गाड़ी चल ही नहीं पा रही थी। किसी तरह दस किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से हम ढूंढ़ते-ढूंढ़ते थाने पहुंचे। वहां हमसे इंतजार करने को कहा गया। मैंने एसएचओ साहब के बारे में पूछा तो पता लगा कि वह छुट्टी पर हैं। आधे घंटे के इंतजार के बाद भी जब कुछ नही हुआ तो मैंने दिल्ली स्थित अपने छोटे भाई सरीखे और वरिष्ठ पत्रकार अवनीश चौधरी को फोन किया। अवनीश ने कहा कि यह तो हिट एंड रन का मामला बनता है। पुलिसवालों से इस संबंध में बात की तो वह हमेशा की तरह समझाने लग गए। बहुत देर हो गई तो मैंने पुलिस वाले को थोड़ा गुस्से में नमस्ते किया और हम आने लगे तभी पुलिसवाला अपना रोना रोने लगा। उनकी बात सुनकर लगा कि वास्तव में काम का बहुत प्रेशर है इनके पास। उन्होंने एक शिकायती पत्र लिखवाया और घर जाने को कहा। अगले दिन मैं तो चंडीगढ़ आ गया, लेकिन भास्कर की समस्या अभी बरकरार थी। संबंधित पुलिसवाले को फोन किया तो वह नहीं उठा पाए। फिर वह सीआईएसएफ अधिकारियों के पास पहुंचे कि शायद सीसीटीवी फुटेज मिल जाएं, लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगी। बताया गया कि मेट्रो स्टेशन के बाहर का एरिया सीसीटीवी की रेंज में नहीं है। फाइनली भास्कर कार को लेकर वर्कशॉप लेकर गए। वहां बताया कि करीब 50 हजार खर्च आएगा और 10 दिन लगेंगे। कुछ पैसा शायर इंश्योरेंस कंपनी का मिल जाएगा। दुर्घटना के बाद हम सब लोगों ने पहले तो भगवान का यही शुक्रिया अदा किया कि भास्कर सुरक्षित है। फिर भास्कर के मन में भी वह बात आई कि अक्सर वह किसी को लेने जाते हैं तो बच्चे को साथ ले लेते हैं। अगर मेरा बेटा या उनका बेटा गाड़ी में पीछे बैठे होते तो क्या होता? भगवान का बहुत-बहुत आशीर्वाद रहा कि ऐसा भी नहीं हुआ। भगवान का आशीर्वाद इस रूप में भी कि हमारी गलती से यह सब नहीं हुआ। भगवान की कृपा आगे भी बनी रहे, यही प्रार्थना है।
इसी दौरान मुझे वह हादसा याद आया जो हमारे साथ की पत्रकार कविता ने हमें बताया था। उनके कुछ रिश्तेदार चंडीगढ़ आए थे। चंडीगढ़ से वापसी के दौरान परवाणु नामक जगह पर उनकी कार खराब हो गयी। वे लोग बाहर उतरकर फोन करने लग गए, तभी पीछे से तेज रफ्तार कार ने टक्कर मार दी। पांच लोग घायल हो गए। उनमें से अब तो एक की जान ही चली गयी। वह कार वाला भी उपरोक्त केस की तरह भाग गया था, लेकिन हादसे के दौरान उसकी कार की तेल की टंकी फट गयी थी, जिससे वह पकड़ा गया, लेकिन क्या होगा? अब वह जमानत पर है। एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है, कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हैं। उस व्यक्ति की कार की फ्यूल टंकी अगर नहीं फटती तो वह भी सराय मेट्रो स्टेशन वाले वाकये की तरह भाग जाता, शायद एक-दो एक्सीडेंट और करता। खैर... क्या कहूं, लिखने का ही रोग है मुझे। इसलिए भगवान को धन्यवाद देते हुए परोक्त के अलावा कुछ पंक्तियां लिख रहा हूं-
अपनी लड़ाई खुद लड़िए, बहुत भरोसा मत रखिए
राह चलते रईसजादों से खुद बचकर चल दीजिए
इस शहर में मददगार भी मिलेंगे, पर अधूरे-अधूरे से
दो शब्द सांत्वना के बोल दिए उसी से सुकून लीजिए।
असल में, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि एक्सीडेंट क्यों हुआ। यूं तो वह ओवरस्पीड में ही रहा होगा, हो सकता है ड्रिंक भी की हो। ये सब तो गंभीर अपराध हैं। लेकिन साथ ही यह भी कि सड़क पर चल रहे हैं तो कभी-कभी कुछ गलतियां भी हो जाती हैं। मेरा सवाल है उसके भागने पर। मेरे कितने जानकार हैं, जिनसे कुछ एक्सीडेंट हो गए हैं, लेकिन पीड़ित की पूरी मदद की गयी। यहां तो पीड़ित ही दोषी की तरह इधर-उधर घूमता रहा और....

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