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Thursday, December 2, 2021

और मुच्चू लौट आया...

धवल की फरमाइश पर विशेष ब्लॉग


बोल और अबोल प्राणियों में एक अनजाना सा रिश्ता बन जाता है। भावनाओं का रिश्ता। रिश्ता कुछ-कुछ ऐसा... कुछ-कुछ वैसा...अनकहा...। अनजाना। पता नहीं कैसा। इसी रिश्ते की एक बानगी है मुच्चू, जिसे कुछ दिन पहले हम लोग, कम से कम मैं तो था की श्रेणी में ले आया था। लेकिन वह है और स्वस्थ हो रहा है। मुच्चू डॉगी है। काठगोदाम में। नेहा उसे करीब आठ साल पहले लेकर आई थी। तब से वह इस घर का सदस्य सरीखा बन गया। बेहद सीधा। ऐसे कुत्ते मैंने कहीं नहीं देखे। मेरा बेटा धवल और फरीदाबाद राजू का बेटा भव्य तो उसे बहुत प्यार करते हैं। वीडियो कॉल के दौरान दोनों मुच्चू को दिखाने की बात करते हैं और जब काठगोदाम जाते हैं तो उसको इतना छेड़ते हैं कि मजाल वह कोई नुकसान पहुंचा दे। बहुत हुआ तो हल्का सा गुर्राएगा... बस। इस बीच, मुच्चू पर जानलेवा हमला हो गया। हमलावार इस प्रजाति का चिर-परिचित जानवर तेंदुआ था। गजब साहस दिखाया नेहा ने, मौत के मुंह से उसे खींच लिया। डॉक्टर को दिखाया। कुछ दिन उदासी रही कि बेचारे पर हमला हो गया। खैर वह ठीक होने लगा। अचानक एक रात उसने अजीब सी बेचैनी होने पर अपना विकराल रूप दिखाया और घरवालों को मजबूरन दरवाजा खोलना पड़ा और वह भाग गया। ऐसा भागा कि घरवालों की पहुंच से दूर हो गया। रोना-धोना हो गया। घरवाले परेशान। तमाम तरह की उदासियों के बीच मुच्चू ही था जो मन लगाए रहता था। नेहा के पापा के साथ तो पूरी दोस्ती निभाता था। नंदू भाई साहब भी पूरा ध्यान रखते। मुच्चू कहां गया? जितने लोग उतनी बातें। मुझ तक भी बात पहुंची। मैंने भी अंदाजा लगाया कि उसे तेंदुआ या बाग ले गया होगा। फिर मैंने एक दो एक्सपर्ट से बात की। उन्होंने कई तरह की बातें बताईं। एक तो यह कि वही तेंदुआ इलाके में फिर आया होगा और उसकी गंध से इसमें बेचैनी हो गयी होगी और यह पागल सा हो गया होगा। इसके अलावा और भी कई तरह की बातें। आखिरकार मान लिया गया कि मुच्चू चला गया। मैंने भी सांत्वना के कुछ मैसेज नेहा को किए। इस बीच, हमारे विवाह की वर्षगांठ पर सुबह-सुबह फोन आया। हमें लगा कि बधाई देने के लिए फोन कर रहे होंगे। पत्नी ने फोन उठाया। पहला वाक्य था, 'मुच्चू आ गया।' इतना सुनते ही सारे घर में खुशी की लहर दौड़ गयी। धवल तो अंदर-बाहर दौड़कर उसे वीडियो कॉल के जरिये देखने लगा। उसने तुरंत अपनी मौसी और पता नहीं कहां-कहां फोन कर इस खबर को फैलाया। मैं यह नजारा देख रहा था। मेरे मन में भी खुशी थी, लेकिन मैं व्यक्त नहीं कर पा रहा था। उस दिन अच्छा बीता। ऑफिस से आने के बाद शाम की पार्टी में एक खुशी और बढ़ गयी। मुच्चू अब स्वस्थ हो रहा है। यहां पर चंद लाइने पेश हैं-
गुफ़्तगू अब जानवरों से किया करते हैं,
क्योंकि ये कभी दिल नहीं दुखाया करते हैं।
जानवर तो बेवजह ही बदनाम है,
इंसान से ज्यादा कोई खूंखार नहीं होता है।

एक भावुक सीन चंडीगढ़ में भी...
चंडीगढ़ आने के बाद से मैं एक ही मकान में रह रहा हूं। इस कालोनी में भी कुछ कुत्ते हैं। कुछ लोगों के घरों में पले हैं और कुछ स्ट्रीट डॉग हैं, लेकिन उनका हमारे घर से भी वास्ता हो गया। कभी-कभी आते और एक कटोरी दूध पीकर चल देते। इस बीच कुछ लोग भावुक होकर कहते कि इनमें से कुछ कुत्ते दुबले हो गए हैं। इनकी एज ही क्या होती है। देखना अब ये मरने लगेंगे। सच में कुछ दिन पहले एक कुत्ता कहीं चला गया और पता चला कि वह मर गया। इसी बीच, एक कुत्ता जिसे मोहल्ले वालों ने 'साफ्टी' नाम दे रखा था मर गया। उसे वहीं एक खाली प्लॉट में दफना दिया गया। उसके बाद का भावुक सीन मुझे दिल से रुला गया। शाम को टलहलते वक्त देखा कि साफ्टी के साथ का एक भूरे रंग का कुत्ता थोड़ी-थोड़ी देर में भौंक रहा है, फिर गोल गोल घूमकर बैठ जाता है। फिर भावना ने बताया कि आज तो इसे देखकर हर कोई भावुक हो गया। यह अपने मुंह में रोटी लेकर जाता और जहां साफ्टी को दफना रखा है, वहीं पर मिट्टी खोदकर डाल देता। उसे लगा कि उसका दोस्त कहीं अंदर जाकर छिप गया है। सचमुच यह सीन भावुक था। मुझे याद है एक बार किसी शो में अमिताभ बच्चन ने कहा था, 'मुझे कुत्ते पालना बहुत अच्छा लगता है, लेकिन कुछ सालों बाद उनकी मौत हो जाने पर बहुत दुख भी होता है, इसलिए अब कुत्ते नहीं पालता।'

... लखनऊ का टॉमी
जब मैं कक्षा 7 में पढ़ता था, लखनऊ में हमारा एक पालतू कुत्ता था। नाम था टॉमी। वह मेरे भाई साहब की साइकिल की आवाज पहचान लेता था। दूर से ही आवाज सुनकर उछलने लगता था। भाई साहब की जेब में उसके लिए कुछ न कुछ होता था। जब सुबह वह ऑफिस जाते तो वह एक किलोमीटर तक छोड़ने जाता फिर लौट आता। ऐसे ही दीदी-जीजाजी के साथ उसका व्यवहार था। एक दिन वह अचानक गायब हो गया और फिर कभी नहीं लौटा।

कई फिल्में बनी हैं जानवरों पर
जानवरों की वफादारी का यह आलम है कि उन पर हिंदी और अंग्रेजी में कई फिल्में बनीं हैं। लिटिल स्टुअर्ट, नीमो, लैस्सी कम होम, लेडी एंड द ट्रैंप, ओल्ड येलेर, द फॉक्स एंड द हाउंड, डॉक्टर डू लिटिल जैसी तमाम हॉलीवुड फिल्मों के अलावा हिंदी में तेरी मेहरबानियां, मर्द, हाथी मेरे साथी जैसी कई फिल्मों में जानवरों की वफादारी की कहानियां हैं।

नुकसान भी पहुंचाया है
जानवरों खासतौर पर कुत्तों ने कई बार नुकसान भी पहुंचाया है। कई बार बच्चे को नोचने और बुजुर्ग को काटने की खबरों से हम-आप दो-चार होते रहते हैं। एक बार तो एक कुत्ते ने घर के दामाद को जान से मार डाला था। हालांकि इन सबमें गलती इंसानों की भी होती है। वैसे स्ट्रीट डॉग से सावधान रहना चाहिए और जो लोग कुत्ता पालते हैं उन्हें चाहिए कि जानवरों की वैक्सीन समय पर लगवाकर उसे नियंत्रण में रखें। जैसे मुच्चू को रखा जाता है।

1 comment:

kewal tiwari केवल तिवारी said...

बहुत ही भावुक लेख हैं पड़कर आँखे भर आई। खासकर सोफ्टी के और उसके दोस्त के लिए।😰

ये कमेंट नेहा ने whatsapp पर किया है।