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Monday, December 20, 2021

इस निर्ममता से कौन से भगवान प्रसन्न होते होंगे

 केवल तिवारी

पंजाब में पिछले दिनों कथित तौर बेअदबी के दो मामले सामने आए जिनमें दो लोगों की हत्या कर दी गयी। ऐसा ही एक वाकया कुछ समय पहले गाजियाबाद में हुआ था जब एक बच्चे ने मंदिर में पानी पीया तो उसे एक व्यक्ति ने बहुत निर्ममता से पीटा। किसान आंदोलन के दौरान एक शख्स के हाथ-पांव काटकर लटकाने का मामला कौन भूल सकता है। गैर मुस्लिमों पर कश्मीर में अत्याचार की बात तो कितना बड़ा मुद्दा बना है, सभी जानते हैं। आखिर ये कौन लोग हैं जो धर्म के नाम पर दावा करते हैं कि उन्होंने अधर्मी को मार दिया। कौन से भगवान हैं जो हिंसा से खुश होते हैं। क्या भगवान, अल्लाह, यीशू, वाहेगुरु आदि-आदि, हम जिस भी धर्म को मानते हों, कभी कोई ऐसा संदेश देता है। क्या हिंदुओं के किसी भी धर्म ग्रंथ में हिंसा को उचित ठहराया गया है। बल्कि वहां तो सार-संक्षेप में कहा गया है-
अष्टादश पुराणेसु व्यासस्य वचनद्वयम
परोपकाराय पुण्याय, पापाय परपीडनम।
अर्थात अठारह पुराणों में व्यास जी के दो ही वचन हैं-परोपकार के समान के कोई पुण्य नहीं और दूसरों को कष्ट देने के समान कोई पाप नहीं।
ऐसे ही इस्लाम में क्या हिंसा को जायज ठहराया गया है। इस्लाम का तो अर्थ ही है शांति की स्थापना। पता नहीं धीरे-धीरे कैसे धर्म के ठेकेदार बनते गये और हत्या को जायज ठहराते चले गये। इसी तरह सिख धर्म में तो सभी महापुरुषों की वाणियों को संजोया गया है। चाहे गुरु नानकदेव हों, रैदास हों, कबीरदास हों, दादू हों या कोई और उसमें तो मानव से प्रेम की सीख दी गयी है। फिर सिख धर्म के अनुयायी तो परोपकार के कितने की काम करते हैं। इस धर्म के अनुयायी जो चैरिटी करते हैं वह कभी भी जाति-पाति या पंथ, संप्रदाय नहीं देखते। जैन धर्म और बौद्ध धर्म में तो अहिंसा परमोधर्म: सिखाया ही जाता है।
जब सभी धर्मों का मूल मंत्र अहिंसा है, प्रेम है तो फिर यह हत्या, पिटाई जैसी बातें कैसे आ जाती हैं। धर्म के नाम पर सियासती लोग भी चुप्पी साध लेते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है। अहिंसा, प्रेम का बिल्कुल यह अर्थ नहीं है कि कोई किसी दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुंचाए। ऐसा कदापि नहीं किया जाना चाहिए और यह अधर्म है, लेकिन अगर कोई ऐसा व्यक्ति सामने आता है तो क्या उसे कानून के हवाले नहीं किया जाना चाहिए। कानून अपने हाथ में लेने का मतलब है आप सबकुछ हो गये। आप न्याय के देवता हो गये। आप अनुयायी हैं। अनुयायी धर्म की बातों को प्रचारित या प्रसारित करते हैं, अधर्म का काम नहीं करते। हिंसक होते समाज के कुछ लोगों को सोचना होगा कि जो भी लोग पर्दे के पीछे हिंसा को जायज ठहराते हैं, वे असल में अधर्मी हैं। इसलिए जागिए। धार्मिक बनिये। हिंसक या पशुवत नहीं।

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