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Wednesday, January 12, 2022

खुद की तलाश

केवल तिवारी 


तलाश रहा हूं मैं खुद को

उनकी आंखों में झांकूं

या
देखूं आईना
आईना तो हर बार हैरानी ही जताता है
उनकी आंखों में जरूर कुछ उम्मीद है
लेकिन कहां?
उन आंखों में भी तो थकान दिखती है
घर-गृहस्थी की
खुद को खोकर नया संसार बसाने की
पर मैं नाउम्मीद नहीं
बेशक शिकायत है उन्हें
मुझमें आये बदलाव की
लेकिन यह बदलाव
उनकी आंखों की मानिंद
ही तो है
उम्मीदें आंखों में चमक की
शरीर के ठसक की
जीवन के लचक की
अपनेपन के परख की
हां
तलाश रहा हूं मैं खुद को
शरीर कमजोर हुआ तो क्या
अभी तो आएगी मन की तरुणाई
जीवन फिर लेगा एक अंगड़ाई
नवीनता के इस पथ पर
अपने भी तो होंगे संग हमारे
भूलेंगे गम सारे
फलक पर होंगे कितने सितारे
हां
नाउम्मीद नहीं हूं मैं
इसीलिए तो चलता रहना
उठना बैठना और गाना
सबकुछ देखना-सुनना
हां
तलाश रहा हूं मैं खुद को

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