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Tuesday, January 18, 2022

डॉक्टर वर्तिका... तिनका-तिनका और वे, जिन्हें नज़्म सी लगने लगी अपनी जिंदगी

 केवल तिवारी

मेरी कांव-कांव भी यदा-कदा चलती रहती है। इसे कभी साहित्यिक जुगाली कह देता हूं और कभी मन को भायी चीजों को 'स्वान्त: सुखाय' के तौर पर कलमबद्ध (कलमबद्ध का आधुनिक मतलब डिजीटली कहीं कुछ लिख देना ही हो रहा है, वैसे ऐसे हर एक लम्हा मेरी डायरी का भी हिस्सा हो जाता है) कर लेना। लिखने के इस क्रम में ताजा नाम हैं डॉक्टर वर्तिका नंदा। उनकी संस्था तिनका-तिनका लंबे समय से एक ऐसे काम में जुटी है जो वाकई अनूठा है। कैदियों के जीवन को संवारने में। संवारने का मतलब यहां कुछ ऐसे गैर सरकारी संस्थाओं की तरह का काम नहीं है कि कुछ मदद कर दी, वगैरह-वगैरह। संवारने से यहां मतलब है उन्हीं के अंदर छिपे हुनर को मंच देने का। क्योंकि जेल की ऊंची-ऊंची दीवारों के अंदर पहुंचे इन लोगों के लिए अगर ऐसी पहल की जाये तो उन्हें भी मौका मिलेगा 'कुछ अच्छा' करने का। क्योंकि इनमें से ज्यादातर की हालत वैसी ही है जैसा किसी शायर ने लिखा है-
वो रेजा-रेजा बिखरने की लज्जतें अपनी
अब ये हाल है कि तिनके समेटना चाहूं।


तिनका-तिनका की ओर से हरियाणा की जेलों में रेडियो जॉकी बनाने की योजना की वर्षगांठ पर डॉक्टर वर्तिका नंदा और उनके काम के बारे में कुछ लिखने के लिए हमारे संपादक जी ने मुझसे कहा। इसके बाद वर्तिका जी से बात हुई। उनके बारे में पहले से जितना जानता था, उससे कहीं ज्यादा बातें बाद में पता चलीं। लेख छपने के बाद अनेक लोगों के फोन आये। लोगों ने बताया कि दैनिक ट्रिब्यून में करीब तीन दशक पहले एक कहानी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। यह इस अखबार में पहली ऐसी प्रतियोगिता थी। इसमें वर्तिका जी प्रथम स्थान पर आयीं और उन्हें सम्मानित किया गया। ऐसी ही कई अन्य बातें भी। खैर... डॉक्टर वर्तिका नन्दा अब किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं।


वह अपराध पत्रकारिता को लेकर लीक से हटकर काम करती हैं और जेल के अनूठे प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं। वह एक सशक्त महिला हैं। तभी तो खौफ देती जेलों के अंदर जाकर बंदियों में बदलाव लाने का काम किया है और साबित किया है कि मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल भी हो सकता है। बता दें कि तिनका-तिनका भारतीय जेलों पर वर्तिका की एक अनूठी शृंखला है। वर्ष 2013 से वह इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से उन्हें स्‍त्री शक्ति पुरस्‍कार से सम्मानित। वर्तिका जी को यह पुरस्कार मीडिया और साहित्य के जरिए महिला अपराधों के प्रति जागरूकता लाने के लिए दिया गया। यही नहीं, 2018 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमबी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने जेलों में महिलाओं और बच्चों की स्थिति की आकलन प्रक्रिया में शामिल किया। हरियाणा और उत्तराखंड की जेलों में रेडियो लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। देश की तीन जेलों के लिए परिचय गान लिखे जिन्हें जेल के ही बंदियों ने गाया। इसके अलावा जेलों पर लिखी उनकी तीन किताबें- तिनका तिनका तिहाड़, तिनका तिनका डासना और तिनका तिनका मध्य प्रदेश-जेल-जीवन पर प्रामाणिक दस्तावेज मानी जाती हैं। मैं जल्दी ही उनकी किताब को पढ़ पाने का सौभाग्य प्राप्त करूंगा। उन्होंने देश की जेलों में रेडियो लाने में महत्वपूर्ण काम किया है। वर्ष 2019 में देश की सबसे पुरानी जेल इमारत आगरा की जिला जेल में रेडियो स्थापित किया। वर्ष 2021 में हरियाणा और उत्तराखंड की जेलों में रेडियो लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। हरियाणा एवं उत्तराखंड के वरिष्ठ संबधित अधिकारियों के अलावा अन्य लोग भी मानते हैं कि उनके इन सभी प्रयासों से जेलों की जिंदगी में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। बदलाव आने ही हैं क्योंकि कहा गया है-
इरादे नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं
गर सच्ची लगन हो तो रास्ते आसां होते हैं।


डॉ वर्तिका जी के रास्ते बेशक आसां नहीं हैं, लेकिन नेक काम के लिए उन्हें सहयोग मिलता रहता है। उनका परिचय और भी बहुत कुछ है। तिनका-तिनका यूट्यूब में वह बहुत अच्छे से कार्यक्रम पेश करती हैं। इसके अलावा हुनर को मंच देने का काम तो अनवरत चल ही रहा है। मैं दुआ करता हूं कि तिनका तिनका फाउंडेशन की संस्थापक और दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग की प्रमुख वर्तिका नन्दा की तरह ही नेक काम करने वाले लोगों को समाज में सम्मान के साथ-साथ खूब सहयोग मिले। दैनिक ट्रिब्यून में जो मैंने लिखा उसकी क्लीपिंग और मैटर नीचे साझा कर रहा हूं साथ ही धन्यवाद करता हूं हमारे कार्टूनिस्ट संदीप जोशी जी का जिन्होंने बेहतरीन कैरिकेचर इस लेख के लिए बनाया।

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