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Sunday, January 16, 2022

जानिए सतगुरु राम सिंह जी के बारे में जो संस्थापक रहे नामधारी पंथ के

 कभी-कभी आपको ऐसे लोगों की जानकारी मिल जाती है जो रोचक होने के साथ-साथ ऐतिहासिक होती है। ऐसा ही हुआ 16 जनवरी को। मेरे पास यह मैटर आया। इसे में हू ब हू यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। पढ़िये। कोई जानकारी पर भ्रम हो तो कृपया बताइये-

जीवन परिचय

सतगुरु राम सिंह जी का जन्म बसंत पंचमी को वर्ष 1816 में गांव भैणी राईयां पंजाब मेंहुआ था। आपका जन्म रामगढिया बढई परिवार में हुआ था। आपने परिवार के साथ बढईका काम कियागांव में खेती भी की और बाद में आप महाराजा रणजीत सिंह जी कीसेना में आ गये।

सेना में रहते हुये भी आपने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ व सिमरणकरते रहे और आपकी रेजिमैन्ट भी आपका अनुसरण कर अन्य सैनिक भी पाठ व सिमरणकरने लग गये। सेना से वापिस आकर कुछ समय के लिये दुकानदारी भी की इस प्रकारआप बढईकिसानव्यवसायीसैनिक एवं सन्त के रुप में भी दिखते हैं।

ब्रिटिश शासन का विरोध

वर्ष 1849 तक अंग्रेज शासन ने पूर्ण रुप से पंजाब को अपने कब्जे में लेलिया था। जिससे आम जनमानस में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध होना शुरु हो गयाथा। इसका मुख्य कारण था ब्रिटिश हुकुमत ने अपने प्रयोग का सारा साजो सामान ब्रिटेनसे मंगवाना शुरु कर दिया और भारत में निर्मित उत्पादों का प्रयोग बंद कर दिया थाजिससे भारत के कामगारों को नुकसान होना शुरु हो गया था और छोटे बडे कामगार केमन में ब्रिटिश शासन के प्रति विरोध बढने लगा।

नामधारीसंत खालसा पंथ की स्थापना

सतगुरु राम सिंह जी ने 12 अप्रैल 1857 को भैणी साहब (पंजाब) में नामधारीसंत खालसा पंथ की रहत मर्यादा स्थापना की। सिख रहत मर्यादा को भी सिख भुलनेलग गये थेश्री गुरु ग्रन्थ साहिब की मर्यादा को पुनः स्थापित किया.

अपने पंथ केलोगों को गुरु नानक देव जी व श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी की मर्यादाओं के साथ नैतिकतौर पर मजबुत होकर अंग्रेज शासन के खिलाफ लडने का आहवान किया। सतगुरु रामसिंह जी ने गउ-गरीब की रक्षा का ध्येय वाक्य अपने नामधारी सिखों को दिया औरइसका अनुसरण करने का आहवान किया।

स्वदेशी का बिगुल बजाया

सतगुरु राम सिंह जी ने पंथ की स्थापना उपरांत अंग्रेजी उत्पादों और अंग्रेजीसंस्थानों के खिलाफ असहयोग का बिगुल बजा दिया। उन्होंने नामधारीयों को घर में बने गुड व शक्कर का प्रयोग व ब्रिटिश मिलों में बनी चीनी केबहिष्कार व नामघारियों को हाथ से बने सफेद खदर को पहननेका आहवान किया और आज भी नामधारी सिर्फ सफेद वस्त्र ही पहनते हैंनामघारी पंथमें काले व नीले रंग को किसी प्रकार से शरीर पर धारण करना वर्जित है.

उन की बनीहुई माला का जप के लिये प्रयोग करनाब्रिटिश डाक व्यवस्था के विरुध सतगुरु रामसिंह जी ने नामघारी डाक व्यवस्था शुरु कीसतगुरु जी के आहवान पर नामधारी सिखोंने ब्रिटिश सरकार की नौकरीयां छोड दी।

इस प्रकार आप स्वदेशी का आहवान करनेवाले प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे। इन सब से ब्रिटिश साम्राज्य में सतगुरु राम सिंह जी केप्रति बौखलाहट आनी शुरु हो गई।

गौरक्षा मलेरकोटला साका : अतुलनीय बलिदान

  • पंजाब में अंग्रेजो द्वारा फिर से बुचडखाने खोलने शुरु कर दिये और उनमेंगौ-कशी करवानी शुरु कर दी। मई 1871 तक पंजाब में गौ-हत्या के विरोध में काफीफसाद हुये और इसके चलते अमृतसर नगरपालिका ने प्रस्ताव पास कर गौ हत्या पर रोकलगा दी।

  • तत्कालीन कमीश्नर ने नगरपालिका का प्रस्ताव रद्ध कर फिर सेबुचडखानों में गौकशी शुरु करवा दी जिससे नामधारी सिखों में आवेश आ गया और14-15 जुन 1871 को 10 नामधारी कुकों ने अमृतसर बुचडखाने पर हमला कर दिया औरकसाईयों का वध करके फरार हो गये। इस पर कार्यवाही करते हुये अंग्रेज पुलिस ने कुछनिर्दोष लोगों को कसाईयों के वध के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया।

  • जब सतगुरु राम सिंहजी को इस बारे पता लगा तो उन्होने हुकम दिया कि जिन भी नामधारी सिखों नेकसाईयों का वध किया है वे पुलिस के पास जाकर समर्पण करें और उनकी जगह पकड़ेगये निर्दोष लोगों को छुडवायें। इस पर नामधारी सिखों ने खुन से सने वस्त्र औरकिरपाण अंग्रेज पुलिस को सौंप कर उनकी जगह गिरफ्तार किये लोगों को छोडने काआग्रह किया और 15 सितम्बर 1871 को अमृतसर में चार नामधारी सिखों को कसाईयों केवध के आरोप में फांसी पर लटका दिया गया।

  • तीन नामधारी सिखों को रायकोट में 26नवम्बर 1871 को फांसी पर लटका दिया गया। लेकिन इसके बावजुद ब्रिटिश राज मेंबुचडखानों में गौहत्या निरंतर जारी रही जिससे नामधारी सिखों में काफी आवेश था।

  • 15 जनवरी1872को 150 नामधारी कुके सिखों ने मलेरकोटला बुचडखाने परहमला बोल दिया जिसमें से कुछ नामधारी सिख फरार हो गये और कुछ गिरफ्तार होगये।

  • 17 जनवरी 1872को 50 नामधारी सिखों को शहीद किया गया जिनमें से 49नामधारी सिखों को तोप आगे खडा करके उडा दिया गया।

बालक बिशन सिंहका अद्भुत साहस

  • पचासवांनामधारीसिख बालक बिशन सिंह था जो काफी छोटी उम्र का था। लुधियाना का तत्कालीन डिप्टीकमीशनर एल0 कावन अपनी पत्नी सहित वहां मौजुद था। कावन की पत्नी ने कहा किये काफी छोटा बच्चा है इसकी जान बख्श दो तो इस पर कावन ने कहा कि अगर येबालक कह दे कि वो सतगुरु राम सिंह का सिख नहीं है तो इसकी जान बख्श दुंगा।

  • यह बात बालक बिशन सिंह को बताई गई तो उसने कहा कि वो यह बात कावन केकान में कहना चाहेगा। कावन ने बालक बिशन सिंह की बात मानकर जैसे ही झुककरअपना चेहरा बालक बिशन सिंह के नजदीक किया तो बिशन सिंह ने कावन की दाढीदोनो हाथों से पकड लीइस पर रियासती सैनिकों के छुडवाने पर भी बालक बिशन सिंहने कावन की दाढी नहीं छोडी तो सिपाहियों ने बालक बिशन सिंह के दोनो हाथ काटदिये और बाद में बालक बिशन सिंह का सिर कलम कर शहीद कर दिया।

वरयाम सिंह का बलिदान

  • 18जनवरी1872 को मलेरकोटला में ही 16 और नामधारी सिखों को तोपों से उडाकर शहीद करदिया गया। इन शहीदों में एक वरयाम सिंह गांव महराज निवासी भी थे जिनका कद बहुतछोटा था और तौप की उंचाई के बराबर नहीं आ रहे थेइस पर अंग्रेज सिपाहियों ने उसेभागने को कहा तो वरयाम सिंह ने वहां पत्थरों का ढेर लगाया और उस पर खडे होकर बोले अब तुम्हारी तोप मुझे उडा सकती है और उन्हे भी तोप से उडाकर शहीद करदिया गया।

  • गौरक्षा के लिये ऐसे बलिदान शायद ही इतिहास में पढने को मिलें लेकिनतत्कालीन राजनीतिक सत्ताओं ने ऐसे बलिदानों को इतिहास में उचित स्थान नहीं दिया।

सतगुरु जी को देश से निर्वासन

  • इन सब घटनाओं से अंग्रेज शासन भौखला गया और उन्होने 18 जनवरी 1872 कोसतगुरु राम सिंह जी को निर्वासिंत कर रंगुन म्योमार भेज दिया। सतगुरु राम सिंह जी नेवहां से पत्राचार के माध्यम से अपने नामधारी सिखों को आजादी की लडाई में लगे रहनेऔर समाजहित में काम करते रहने के हुकमनामे जारी किये।ब्रिटिश हुकुमतके अनुसार सतगुरु राम सिंह जी कावर्ष 1885 में रंगुन में ही देहावसान बताया गया परन्तु उनकी मृत्यु का कोई भीप्रमाण अंग्रेज हुकुमत ने नहीदिया। जिसके कारण उनके अनुयायी आज भी उनको जीवितही मानते हैं।

सतगुरु राम सिंह जी : आध्यात्मिक, सामाजिक व्यक्तित्व

  • सतगुरु राम सिंह जी ने ना केवल आजादी के समर में भागीदारी की थी बल्किनामधारी पंथ की स्थापना कर समाज में व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने के लिये भीविशेष कार्य किया।

  • उस समय लडकियों को पैदा होते ही मार दिया जाता थासतगुरुजी ने इसका विरोध करते हुये ऐसे परिवारों का सामाजिक बहिष्कार करने का आहवानकिया। उन्होने बाल विवाह और बटे में (बदले में विवाह) का भी बहिष्कार कर इसे बंदकरने का काम किया और नामधारी पंथ में विधवा महिलाओं के पुनः विवाह को भी मान्यताप्रदान की।

  • आपने बालिकाओं की शिक्षा के लिये भी उस समय व्यवस्थायें की। सतगुरुराम सिंह जी ने आनंद मर्यादा लागु करके बिना दान दहेज के नामधारी पंथ में विवाह कीमर्यादा शुरु की। आपने नामधारी पंथ में अन्तरजातीय विवाह को स्वीकार्यता प्रदान कीऔर खुद अपनी हजुरी में अनेकों ऐसे अन्तरजातीय विवाह करवाये।

  • सतगुरु राम सिंह जीने शादीयों में फिजुल खर्ची को बंद करने के लिये सामुहिक विवाह की प्रथा शुरु की,आज भी नामधारी पंथ के मुख्यालय श्री भैणी साहिब पंजाब में सामुहिक विवाह किये जातेहैं।सतगुरु राम सिंह जी ने ना केवल आजादी के समर में अपना योगदान दिया बल्किनामधारी पंथ की स्थापना कर विभिन्‍न सामाजिक कुरीतियों को दुर करने का काम किया।

  • भारत की आजादी के सर्वप्रथम प्रणेता (कुका आंदोलन) असहयोग आंदोलन के मुखिया,नामधारी पंथ के संस्थापक तथा महान समाज सुधारक ऐसे महापुरुष को भारत के इतिहासमें उचित स्थान दिया जाना आवश्यक है।उनके अनुयायी आज भी भाव-व्यवहार- खान-पान में स्वदेशी को प्राथमिकता देतें है ऐसे सतगुरु को शत-शत ‘नमन।

साभार- स्वर्ण सिंह विर्क


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