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Sunday, January 14, 2024

मकर संक्रांति : प्रकृति से सीखने और पर्यावरण को संवारने का पर्व

 केवल तिवारी 

मकर संक्रांति। एक विशेष त्योहार। प्रकृति से सीखने का और पर्यावरण को सहेजने का पर्व। भारतीय संस्कृति की मान्यताओं का सार है 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अर्थात अंधकार से प्रकाश यानी रोशनी की तरफ बढ़ें। मकर संक्रांति इसी मान्यता का अहम पड़ाव है। सूर्य उत्तरायण की ओर। प्रकृति, एक नया संदेश देने के लिए तैयार है। नयेपन का संदेश। बिना नवीनता के सुख कहां। सृष्टि में एक नवीनता आने लगती है। नवीनता ही सृष्टि का नियम है। यह समय किसी क्षेत्र विशेष के लिए नहीं, वरन संपूर्ण भारत वर्ष यहां तक कि विश्व के अनेक देशों के लिए विशेष होता है। पंजाब में लोहड़ी की धूम, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में खिचड़ी का पर्व।

हरिद्वार में स्नान करते श्रद्धालु। फोटो: साभार इंटरनेट 


 तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक और आंधप्रदेश में मकर संक्रमामा। उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान आदि में उत्तरायण या उत्तरायणी। केरल में 40 दिनों का बड़ा त्योहार शुरू, ओडिशा में भूया माघ मेला, हरियाणा और हिमाचल में मगही। इसी तरह असम में माघ बिहू, कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत। इन सबके साथ ही नेपाल में माघे संक्रांति, थाईलैंड में सोंगक्रण, म्यांमार में थिन्ज्ञान, कंबोडिया में मोहा संगक्रण, श्रीलंका में उलावर थिरुनाल आदि। इसके अलावा भी कई देशों और हमारे देश के अन्य हिस्सों में भी यह पर्व अलग-अलग रूप में मनाया जाता है।  

पौराणिक, धार्मिक मान्यताओं के साथ ही मकर संक्रांति का वैज्ञानिक आधार भी है। उड़द की खिचड़ी खाने का रिवाज हो या फिर मीठे पकवान बनाने का। लड्डू बनाने की परंपरा हो या फिर नदियों में स्नान फिर ध्यान लगाने का और उसके बाद दान का। सूर्य उत्तरायण होने के इस मौसम में ही हमारे शरीर में भी कुछ परिवर्तन होते हैं। मौसम के हिसाब से इन्हें नियंत्रित करने के लिए खान-पान का अलग महत्व है।  

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस विशेष दिन पर भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते है, उस समय भगवान् शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने का भी यह प्रतीक है। संबंध स्वस्थ तो मन स्वस्थ और मन से ही तन के क्रियाकलाप भी नियंत्रित होते हैं। एक सकारात्मक संदेश। यह सकारात्मकता खुशी और समृद्धि का प्रतीक है। इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है, जो भीष्म पितामह के जीवन से जुड़ी है, जिन्हें यह वरदान मिला था, कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी। जब वह बाणों की शैया पर लेटे हुए थे, तब वह उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी आंखें बंद कीं और इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति हुई।  

समृद्धि का एक और प्रसंग इस त्योहार से जुड़ा है। इसी दौरान फसल पकने की शुरुआत होती है। सूर्य रोशनी, ऊर्जा, ताकत और ज्ञान का प्रतीक है। चैतन्यता का प्रतीक है। ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ का प्रतीक है। ‘अब रैन कहां जो सोअत है’ का प्रतीक है। बहुत हुआ सोना, अब उठना है। सोने से मतलब है कि धुंध का माहौल। उठना यानी यह धुंध अब छंटेगा। खुशहाली आएगी। आप अपने चारों ओर नजर दौड़ाइये- कहीं सरसों खिलने लगी है, गेहूं में बालियां आने लगी हैं। गन्ने के खेत लहलहाने लगे हैं। ऐसे ही अवसर के लिए तो शायद एक कवि ने सटीक लिखा है, 'सतरंगी परिधान पहनकर नंदित हुई धरा है, किसके अभिनंद में आज आंगन हरा भरा है।' मकर संक्रांति स्नान, ध्यान के साथ ही दान का भी पर्व है यानी चैरिटी का। यथाशक्ति जरूरतमंदों को दान दें। प्रकृति का संदेश भी तो यही है। हवा, पानी, पेड़-पौधे देने वाली प्रकृति यही तो कहती है कि दान दीजिए, मेरी तरह यानी प्रकृति की तरह। प्रकृति को संवारने का भी यह पर्व है। कुदरत के इस अनूठे पर्व को समझिये, इसके मर्म को समझिये और प्रकृति को संवारिये, निहारिये, सीखिये। यही है मकर संक्रांति।  


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