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Wednesday, January 31, 2024

ये मुलाकात एक बहाना है....

केवल तिवारी

जीवन पथ पर कुछ लोगों के बीच उस वक्त की दोस्ती लगभग टिकाऊ सी होती है, जब आप करिअर और पारिवारिक उत्तरदायित्वों की दहलीज पर होते हैं। कुछ किंतु-परंतु के बावजूद इनकी 'मित्रता' बरकरार रहती है। उनमें से कुछ लोग ऐसे दौर में नून-तेल का हिसाब लगाने की स्थिति में आ जाते हैं। कुछ का हिसाब-किताब ही गड़बड़ाया होता है, कुछ पैदाइशी हिसाबी होते हैं, कुछ शादी की तैयारी में जुट जाते हैं। कुछ हरफनमौला टाइप होते हैं, मशहूर लेखक प्रताप नारायण मिश्र के निबंध 'मित्रता' में कही हुई बात के मानिंद। उन्होंने लिखा था कि असली मित्रता तो वही है जब वैचारिक, खानपान आदि विविधताओं के बावजूद बरकरार रहे। इसके बाद कुछ अनबन के बावजूद ऐसी दोस्ती का छोटा सा 'वायरस' जिंदा रहता ही है। स्कूली दोस्तों के बीच तो हाथापाई भी हो जाती है, कुछ समय तक कट्टी फिर सल्ला भी हो जाती है। लेकिन जीवन का यह दौर जिसका मैंने जिक्र किया न तो ज्यादा लड़ने-झगड़ने का होता है और ना ही ज्यादा मनमुटाव पालने का। यह अलग बात है कि 'नासमझ' मित्रों में हमेशा कुछ न कुछ गड़बड़ चलता ही है। जब 'पढ़े-लिखों' का उक्त टाइप का मित्र समाज हो तो एडजस्टमेंट की भी बहुत गुंजाइश होती है। ऐसी ही एक मित्र मंडली है 'हिमगिरि 911' इसके सूत्रधार हैं सुरेंद्र पंडित। संरक्षक हम सब श्री भुवन चंद्र जी को मानते हैं। वह हम सबके जीजाजी हैं। इनका हमें संघर्ष के उस दौर में बहुत सहयोग मिला। मित्र सुरेंद्र के जरिये ही हम आपस में मिल पाए। आज इस ग्रूप का जिक्र इसलिए कि लगभग दो दशक बाद हम सब लोग पिछले दिनों दिल्ली में मिले। चाणक्यपुरी उत्तरांचल सदन में। देहरादून से आए राजेश डोबरियाल ने यहां कमरा बुक किया था। मित्र सुरेंद्र की बदौलत आवभगत अच्छी हो गयी। बॉम्बे से सचिन जादौन उर्फ चश्मा डॉट कॉम उर्फ ठाकुरके पहुंचे और चंडीगढ़ से मैं यानी केवल तिवारी उर्फ बामन के। बाकी सभी मित्र मसलन- धीरज, जैनेंद्र उर्फ जैनी, हरीश, पंकज और वैभव शर्मा उर्फ बंटी गाजियाबाद से। कुछ लोगों का उर्फ जानबूझकर छोड़ दिया है। पहले पहल तो उम्मीद नहीं थी कि सभी पहुंचेंगे। क्योंकि हमारे ग्रूप 'Himgiri 911' में सन्नाटा सा ही पसरा रहता है। मित्र सचिन ने एक दिन करीब डेढ माह पहले मुझे बताया कि जनवरी के अंत में मैं दिल्ली-एनसीआर में हूं, क्या मिलने का प्रोग्राम बन सकता है। अपनी भाषा में उन्होंने कहा, 'करंट लेकर देखो।' मैंने करंट लिया और ग्रूप में मैसेज डाल दिया। तीन-चार मित्रों का रेस्पांस आया। होते-करते उम्मीद बंधने लगी कि हम मिलेंगे ही। देहरादून, मुंबई और चंडीगढ़ से तीन आ ही रहे थे। दो-तीन मित्रों का बेहतरीन रेस्पांस था। जीजाजी भी बातचीत में सहभागी थे। तमाम आशंकाओं के बावजूद इतना बेहतरीन रहा कि हम सभी मित्र मिल पाए। हालांकि सभी में अगर सूची बनाएं तो हिमगिरि के उक्त फ्लैट में दो दर्जन लोग जुड़े होंगे, लेकिन हम 9 लोग तो किसी न किसी तरह जुड़े ही रहते हैं।

इस मिलन के बाद छोटा सा ब्लॉग लिखने के लिए पहले में इंटरनेट पर शेर ओ शायरी ढूंढ़ रहा था ताकि कुछ यहां चिपका दूं, लेकिन फिर मन में आया कि कुछ शायरियां ब्लॉग के अंत में चिपकाऊंगा, पहले ऐवें ही लिखा जाये। क्योंकि जब मिलन समय, तारीख और स्थान तय हो गया तो जाहिर है उसका जिक्र होना ही था। वही जिसका कभी जिक्रभर हो जाए तो पूरा दिन फिक्र में लग जाता था, लेकिन अब सच में उस कुछ के जिक्र से ज्यादा अच्छा लग रहा था मिलजुलकर कुछ गरियाते हुए अंदाज में पुरानी बातों को याद करें क्योंकि कुछ का तो अब सबका अपना-अपना हिसाब हो गया है। मित्र जैनी एक बार कहते थे कि आज हम ब्रांड पूछते हैं कुछ समय बाद पेट सफा की दवाई के बारे में बात करेंगे। खैर मिलन अच्छा रहा। किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ समझा, किसी को कुछ समझाया गया। डिनर के बाद मैं और राजेश ही वहां रुके, जिनकी वजह से रुकने का इंतजाम किया था, उन्हें जाना पड़ा। फिर कुछ का कुछ तो होगा ही। उम्मीद है अगली बार इस कुछ में से हम कुछ निकाल लेंगे। कुछ सुधर जाएंगे और कुछ सुधार कर लेंगे, बस दुआ है कि ऐसी मीटिंग होती रहें। तो ये थी खाली-पीली की खारिश, खुजली पूरी हुई। सभी मित्रों का धन्यवाद। अब कुछ शेर चिपका रहा हूं। साथ में कुछ फोटो साझा कर रहा हूं। ब्लॉग के शीर्षक पर मत जाना, वह तो बस ऐंवें ही है।


दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त, दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से।


दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है, रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है।


मिरी वहशत मिरे सहरा में उन को ढूंढ़ती है, जो थे दो-चार चेहरे जाने पहचाने से पहले 


नोट : चंडीगढ़ आकर मित्र मिलन कार्यक्रम की फोटोज मैंने अनेक लोगों दिखाई तो 99 प्रतिशत लोगों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि इतने वर्षों से आप लोगों का साथ है और आप मिलते रहते हैं। मैंने कहा, मिले तो दो दशक बाद हैं, पर साथ तो है। कुल मिलाकर और कुछ हुआ हो या नहीं, आश्चर्यजनक काम तो हुआ ही है।

तो फिर एक बार जय हो...







3 comments:

Anonymous said...

Great sir. Ye pal alag ho hote hain.

Jatinder jit Singh said...

Amazing sir

Anonymous said...

धन्यवाद