केवल तिवारी
इरादे नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं
गर सच्ची लगन हो तो रास्ते आसां होते हैं।
पिछले दिनों द ट्रिब्यून स्कूल के विशेष कार्यक्रम में कई साल पहले दोहराई गयी इन पंक्तियों की याद आई। असल में चार दिनों का कार्यक्रम था और एक दिन हमें यानी (10th class के स्टूडेंट धवल के पैरेंट्स) को भी बुलाया गया था। धवल ने ओलंपियाड में दो विषयों में मेडल जीते थे। साथ ही सुखद संयोग है कि उसके मामा के बेटे भव्य को भी बेहतरीन शैक्षणिक प्रदर्शन करने के लिए दो पुरस्कारों से नवाजा गया। इनमें एक आल राउंडर का भी शामिल रहा। ट्रिब्यून स्कूल से ही मेरा बड़ा बेटा कार्तिक पढ़ा है। इस नाते इस स्कूल करीब डेढ़ दशक पुराना नाता हो गया है।
प्रिंसिपल रानी पोद्दार मैडम का उत्साहजनक अंदाज और चांद नेहरू मैडम की बात
इस बार मुझे जो हटके लगा वह था प्रिंसिपल रानी पोद्दार मैडम का अलग अंदाज। एक तो वह हर बच्चे के साथ उसके अभिभावकों को भी सामने बुला रही थीं। उनका कहना था कि पैरेंट्स अपने लिए, अपने बच्चों के लिए भी तालियां बजाएं। एक-एक बच्चे और उनके पैरेंट्स पर स्पेशल अटेंशन दे रही थीं। साथ थीं स्कूल की चेयरपर्सन चांद नेहरू मैडम भी थीं। मेरा सौभाग्य है कि अनेक अवसरों पर चांद नेहरू मैडम से बातचीत का मौका मिलता है और कई बार उन्होंने टिप्स दिए जो मेरे काम आए। उनकी एक पुरानी बात याद आई जिसके तहत उन्होंने कहा था बच्चों के लिए लालवत (लाड़वत), दंडवत और मित्रवत। मैंने धवल के साथ पुरस्कार लेते वक्त इसका हलका सा जिक्र किया तो बाद में प्रिंसिपल रानी मैडम ने इसे दोहराने के लिए कहा। मैंने शुरू की दो बातें बताईं कि पहले बच्चों को बहुत स्नेह, फिर उन्हें थोड़ा डर दिखाना या दंड देना भी जरूरी होता है… बाद में चांद मैडम ने स्पष्ट किया और इसमें जुड़े एक अन्य सूत्र मित्रवत को भी बताया, यानी 15 वर्ष के बाद बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार जरूरी है। मुझे जब अपनी बात रखने का मौका मिला तो मैंने बताया कि किस तरह रानी पोद्दार मैडम ने बच्चे को आईसर भोपाल जाने का मौका दिया और हमें आने-जाने के टिकट के पैसे भी दिलवाये। साथ ही उनका यह अंदाज कि बच्चे ही स्टेज संभालेंगे, बच्चों को पैरेंट्स ज्यादा बोलेंगे और पुरस्कार लेने साथ आएंगे। मुझे याद आया पिछले साल का समय जब धवल के अनेक पुरस्कार मिले और आदरणीय बोनी सोढ़ी मैडम के मंच पर मौजूदगी में ये पुरस्कार मिल रहे थे। धवल को किसी अन्य स्कूल में किसी प्रतियोगिता के लिए भेजा गया था। प्रिंसिपल मैडम ने कहा कि धवल के फादर को स्टेज पर बुलाइये। बाद में धवल एक अन्य पुरस्कार को लेने पहुंच ही गया। बहुत-बहुत धन्यवाद मैडम। अनेक कथित बड़े स्कूलों से द ट्रिब्यून स्कूल में अपने बच्चों को शिफ्ट कराने वाले पैरेंट्स ने साफ कहा कि उन्हें यहां टीचर्स से कितना सपोट मिलता है, उसे बयां नहीं कर सकते। एक महिला तो बेहद भावुक हो गयीं। सच में यहां का संपूर्ण स्टाफ चाहे म्यूजिक सेक्शन हो या फिर स्पोर्ट्स। साथ ही हर विषय के टीचर्स व्यक्तिगत अटेंशन देते हैं, अभिभावकों की सुनते हैं और उन्हें जरूरी टिप्स देते हैं। सभी टीचर्स को धन्यवाद। उनके लिए कबीर के दो दोहे समर्पित-
गुरु कुम्हार शिश कुंभ है, गढ़-गढ़ काढ़े खोट। अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहे चोट।
सब धरती कागद करूं, लेखनि सब बनराय, सात समुंद की मसि करूं गुरु गुन लिखा न जाये।
कुछ बातें जो मैं अक्सर कहता हूं
मेरा यह सौभाग्य है कि अतीत में अनेक जगह मुझे मोटिवेशनल बातचीत के लिए बुलाया गया। मैं कुछ बातें अक्सर कहता हूं, उन्हें भी यहां दोहरा रहा हूं। एक तो बच्चों के लिए यह कि भावनाओं को हमेशा बनाए रखो यानी इमोशन बहुत जरूरी हैं। अगर कभी आपके अभिभावक, खासतौर पर मां उदास हैं, क्या आपने उनका चेहरा पढ़ा। यदि आपको यह पता ही न चले कि मां उदास या खुश हो तो समझिए आपमें भावनाओं की कमी है जो अच्छी बात नहीं है। साथ ही गलतियों के सिर्फ दो ही कारण होते हैं- एक या तो आपको जानकारी नहीं और दूसरा आप लापरवाह हैं। इसके साथ ही अभिभावक भी स्कूल या अन्य कई जगह सुनी गयी बातों को पहले से जानते हैं बस उस पर अमल करते वक्त सब भूल जाते हैं। जितना भी अच्छा सुनकर जाएं उसमें से कुछ बातों को भी फॉलो कर लें तो बात बनेगी। ब्लॉग लिखने और ट्रिब्यून स्कूल से संबंधित अन्य बातों का यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। पुरस्कृत बच्चों और उनके अभिभावकों को हार्दिक शुभकामनाएं। साथ ही जो पुरस्कृत नहीं हुए वे अगली बार जरूर ऐसी सूची में स्थान पाएंगे, बस जरूरत है चलते रहने की। ध्यान रखो बच्चो, ‘पुस्तकस्था तु या विद्या, परहस्त गतं धनं, कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनम’ अर्थात पुस्तक में लिखी विद्या और दूसरे को दिया हुआ धन, यदि समय पर काम न आए तो बेकार है। जय हिंद