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Saturday, June 14, 2025

समय का साया



केवल तिवारी 
जमीं तलाश रहा हूं बुढ़ापे के लिए
सवाल... क्या आएगा बुढ़ापा
जहां बनाना चाहता हूं खुद के लिए
सवाल... क्या मिलेगा जहां
यहां, वहां या फिर कहीं और
चलते रहे पथ पर अब ढूंढ़ रहा हूं ठौर
क्यों हूं विकल,
कितना लंबा समय यूं ही गया निकल
कहां कुछ अपना होता है
जहां थमे, वहीं समय गुजरता है
जैसे-जैसे गुजर रहा है समय
मैं थमना नहीं चलते रहना चाहता हूं
सवाल... क्या मुझे मिलेगी राह
राह दिखा तो रहे हैं मेरे अपने
मेरी आंखों से ही तो देख रहे सपने
मैं दिवा स्वप्न तो नहीं देखता
पर सपने संजोना भी नहीं भूलता
चलने की जिजीविषा मैंने सदा अपनाई
हर मोड़ पर मुझे एक कहानी याद आई
सवाल... क्या मिलते रहेंगे किरदार
टकराते ही तो रहते हैं बार-बार
कभी समय का फेर था और कभी समझ का
कभी आंधिया-बौछारें थीं, कभी मौसम गर्मी का
कभी टूटे, कभी झंकृत हुए तार दिल के
अकेलापन मिला जब चाहा चलना मिल के
अब सांझ को करीब देख रहना चाहता हूं संग-संग
सवाल... क्या घुलेंगे रिश्तों में सतरंगी रंग
ताउम्र चलता रहा हूं उम्मीदों भरे सफर में
अब क्यों नाउम्मीदी पालूं थोड़ी बची डगर में
अब तो खुशियों की बूंदाबादी भी भिगो देती है
मन की प्रसन्नता मां की तरह हो जाती है
हम अविरल राही चढ़ते रहेंगे हर नयी सीढ़ी
तुम भी होगे, हम भी होंगे और होगी नयी पीढ़ी
सवाल... अब उठने नहीं देंगे, जाएगी नयी कहानी गढ़ी
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मां की बात
बच्चों का प्रसन्न मुख देख तेरा चेहरा खिल जाता है
परिवार के लिए खाना पकाकर तेरा पेट भर जाता है
कामकाजी हो या घर संवारने वाली, परिवार ही है तेरी जां
न जाने कितनी दुनिया छिपी है बस एक ही संबोधन है, मां
कभी मन से उठे सवाल, मां तू कैसे ऐसी है
कभी खुद आवाज आए तू भगवान जैसी है
भाव का भूखा भगवान, भावों से भरे तेरे अरमान
नस-नस भरा है परिवार का प्यार, तू है एक आसमान
कैसे कोई कुछ अल्फाज में लिख सकता है तेरी बात
मां तू एक ग्रंथ है, दुनिया है तू ही है तो पूरी अल्फाज

Sunday, June 8, 2025

गोपाल भोला जी के साथ भी निकला ऑफिशियल यादगार सफर

 केवल तिवारी

भावुकता तो लाजिमी है इस मौके पर, पर सुकून भी है पूरा

परिवार जैसे संस्थान में खेली लंबी पारी, कुछ रहा नहीं अधूरा।



ये दो पंक्तियां पिछले दिनों तब अपने आप फूट गयीं जब भोला जी की रिटायरमेंट पार्टी के बाद कुछ लिखने के लिए बैठा। पूरा नाम है गोपाल कृष्ण भोला। ट्रिब्यून संस्थान में उन्होंने करीब चार दशक की पारी खेली और मेरे साथ उनका एसोसिएशन वर्ष 2013 से है। दैनिक ट्रिब्यून डिजाइनिंग एवं पेजीनेशन सेक्शन में इंचार्ज रहे भोला से अनेक मुद्दों पर बात होती। उनसे जो सीखने लायक सबसे अहम बात है, वह है कूल रहना। गोपाल जी कूल रहते हैं। विषम परिस्थितियों में भी और सामान्य परिस्थितियों में भी। जैसे कि सूर्य के लिए कहा गया है- उदेति सविता ताम्र, ताम्र एवास्तऐति च। सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥

शनिवार, 31 मई की शाम से ही सभी से आग्रह किया गया था कि एडिशन जल्दी करना है। भोला जी ने पूरे हिंदी न्यूजरूम और अन्य साथियों को आमंत्रित किया था। प्रेस क्लब में पार्टी थी। न्यूज रूम के साथी समय पर फारिग हो गये। लगभग सवा ग्यारह बजे तक सभी पहुंच चुके थे। वहां पार्टी चल रही थी। कहीं किस्सागोई। कहीं पुरानी बातें। कुछ भविष्य की प्लानिंग। हम लोग पहुंचे तो गोपाल जी की बदौलत अपने वरिष्ठ साथियों से मिलने का मौका मिला। राजीव शर्मा जी, अनूप गुप्ता जी, रामकृष्ण भाटिया जी जैसे अनेक लोगों से मुलाकात हुई।

दो बड़े बच्चों से मुलाकात अच्छी लगी

पार्टी के दौरान ही बातों-बातों में पेजीनेशन विभाग के साथी मदन झांझड़िया जी और अवनीश जी ने बताया कि उनके बेटे भी कार्यक्रम में पहुंचे हैं। उन्होंने दोनों को बुलाया। दोनों से मुलाकात और बातचीत बहुत अच्छी लगी। उनके बारे में जानने का मौका मिला। स्वास्थ्य के प्रति उनकी जागरूकता और भविष्य की तैयारी के सिलसिले में भी बात करते हुए अच्छा लगा। बड़े हो चुके बच्चों से परिपक्वता भरी बातें करना मुझे हमेशा से अच्छा लगता है। जबसे मेरा बेटा भी कॉलेज पासआउट हुआ है, यह अच्छा लगना कुछ बढ़ गया है।

जब भावुक हो गए गोपाल भोला जी...

गोपाल भोला जी ने सपने संजोये थे कि उनकी रिटायरमेंट पार्टी में उनके पिता की शिरकत होगी। उन्हें और हमारे जैसे अन्य मित्रों को यह अच्छा भी लगेगा, लेकिन दो माह पूर्व अंकल जी एक दुर्घटना में चोटिल हो गए। तब से उनका इलाज चल रहा है। पूरी शिद्दत से गोपाल भोला जी का परिवार उनकी सेवा सुश्रुसा में लगा है। रिटायरमेंट पार्टी में किसी ने हालचाल पूछ लिया। इसके साथ ही बातों-बातों में बेटे गौरव और बहू का भी जिक्र हुआ। वे दोनों न्यूजीलैंड से नहीं आ पाए। गोपाल जी के छोटा भाई भी दो माह पहले ही पिताजी का हाल लेने आए थे, इसलिए इतनी जल्दी उनका आना भी संभव नहीं हो पाया। मित्रों, रिश्तेदारों से भरी इस महफिल में भावनाओं का कुछ ज्वार-भाटा फूटा तो सभी भावुक हो गए।

उन दो पंक्तियों की मानिंद जिसके शब्द हैं-

शिकायत करने पहुंचे थे इबादत सी हो गई।

भूलने की ठानी थी पर तेरी आदत सी हो गई।

कार्यक्रम शानदार रहा। उससे दो-तीन पहले भी गोपाल भोला जी ने प्रेस क्लब में कुछ चुनींदा लोगों के साथ गेट टू गेदर किया। मैं उसमें शामिल नहीं हो पाया था। भोला जी को जीवन पथ पर खूब खुशियां मिलें। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ। मिलते रहेंगे। कुछ फोटो और वीडियो साझा कर रहा हूं।








Sunday, May 25, 2025

कड़ी मेहनत के सतरंगी फल... हे री सखी मंगल गाओ... कुक्कू बना इंजीनियर

केवल तिवारी

बेटा आप आये, आईआईटीएन बनकर, गर्व से सिर ऊंचा हो गया।

जीवन अब आपका सुगम रहे, यही दुआ दिल से निकलती है।

कड़ी मेहनत के सतरंगी फल, आपने दिखाया अपना हुनर।

हर खुशियां मिले आपको, रोशन हो हर दीवार ओ दर।


पिछले दिनों ये चार पंक्तियां उस वक्त लिखीं, जब बेटे कार्तिक यानी कुक्कू को उसके कैंपस (आईआईटी, रोपड़) से लेने के लिए गया। चार-पांच दिन पहले से ही मेरे और कुक्कू की मम्मी भावना के मन में 'कुछ-कुछ हो रहा था।' ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे। खाने में यह बना देंगे। इतने बजे चलेंगे। ये, वो... वगैरह-वगैरह सोचते-सोचते रामचरित मानस की कुछ पंक्तियां मन में अपनेआप आ रही थीं। किसी भी समय। भावना ने एक-दो बार कहा, जूठे मुंह तो मत कहो। फिर खुद को संयत किया। कल्पना कर रहा था कि तुलसीदास ने उस वक्त कितना अच्छा लिखा जब प्रसंग आता है कि हनुमान जी ने अंगूठी को उनके (सीताजी के) सामने गिराई। उसमें लिखा गया है, 'चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदय अकुलानी' उन्होंने अंगूठी को पहचान तो लिया, लेकिन वह खुशी और दुख से भर गयी हैं। आखिर यह अंगूठी यहां आ कैसे गयी। (जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई )

पूरी चौपाई इस तरह से है, 'तब देखी मुद्रिका मनोहर, राम नाम अंकित अति सुंदर। चकित चितव मुदरी पहचानी, हरष-विषाद हृदय अकुलानी।'

आज हम लोगों का भी हाल ऐसा ही था। विश्वास सा नहीं हो रहा था। लग रहा था कल की ही तो बात है, जब एजुकेशन लोन के लिए दो-तीन बैंकों में गया। कुक्कू के बीच वाले मामा शेखर जोशी जी घर आकर कुछ पैसे दे गये। फिर पता चला कि कुक्कू को एसबीआई से खुद ही ऑफर आया है और ब्याज भी चार साल का माफ होगा। कोरोना महामारी चरम पर थी। हॉस्टल जाने के सपने संजोये कुक्कू घर में ही अपने ट्रॉली बैग को लेकर घूमता और हंसता। हम लोगों के मन में भी कई चिंताएं थीं। जिसे हमने आजतक किसी दुकान तक में नहीं भेजा, वह हॉस्टल में कैसे एडजस्ट होगा। हालांकि यह अलग बात है कि दसवीं के बाद सरकारी स्कूल में दाखिला लेने से पहले जेईई परीक्षा फॉर्म भरने और बाद में एफेडेविट से लेकर अन्य फॉर्म भरने में उसी ने राह दिखाई। वह बताता और मैं साथ में चलकर औपचारिकताएं पूरी करता। आखिरकार वह दिन आ ही गया। उसने जेईई एडवांस क्लीयर किया। इसके बाद कभी किसी की सलाह कि लो ट्रेड में आईआईटी दिल्ली, मुंबई, रुड़की भेजो। कुछ ने सलाह दी कि कंप्यूटर साइंस ही दिलाओ चाहे जहां मिले। कुक्कू ने केवीपाई (किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना) परीक्षा भी पास की थी। इसका लाभ उसे कुछ आईआईटी में मिल रहा था। स्कॉलरशिप का भी लाभ मिल रहा था। लेकिन हमने फाइनल फैसला कुक्कू पर ही छोड़ दिया और वह आईआईटी रोपड़ का विद्यार्थी बन गया। फॅार्म भरते वक्त ईडब्ल्यूएस नहीं दिखा पाए जाहिर है उसका फायदा भी नहीं उठा पाए। खैर... कहानी और कहानियां बहुत लंबी हैं, इस वक्त कोशिश, सिर्फ उस वक्त की बात करने की।

कुक्कू को कैंपस से लाने की तैयारी में हम लोग थे और दरअसल, हम दोनों, ज्यादातर बातें फ्लैशबैक में कर रहे थे। कुक्कू की जब दसवीं में फेयरवेल पार्टी थी तो उसका दोस्तों के साथ घूमने जाने का प्रोग्राम था। मैंने मना कर दिया और उसे लेकर पहले फरीदाबाद फिर वृंदावन गया। कुक्कू कुछ देर मुझसे नाराज रहा। कभी भावना ने उसे पचास रुपये दिए कोचिंग आने-जाने के लिए, तो वह 30 रुपये बचा लाया। इसके लिए कुछ देर पैदल चल देता। ऐसी ही अनेक बातें। इन बातों को सुनकर छोटा बेटा धवल बहुत रस लेता। वह हम लोगों की बातों में अलग तरह का रस लेता और मजाक भी बनाता। खैर सबसे पहले यही आइडिया आया कि जिस दिन कुक्कू को लाएंगे, उसी शाम सुंदरकांड का पाठ करेंगे। 'प्रभु की कृपा भयउ सब काजू, जन्म हमार सुफल भा आजू।' बेशक कुक्कू आईआईटीएन बनकर लौट रहा था, लेकिन पिछले कुछ समय से उसके स्वास्थ्य को लेकर हम चिंतित रहे। कई डॉक्टरों को दिखाया। ऑपरेशन की ही सलाह मिली। खैर...।

सोमवार 19 मई, 2025 की वह तारीख आ ही गयी। मैं, भावना, कुक्कू के मामा भास्कर (राजू) एवं मामी पिंकी सुबह करीब आठ बजे घर से चल दिए। कई दिनों से कुक्कू को ताकीद की जा रही थी कि सामान पैक करते रहना। नो ड्यूज सर्टिफिकेट ले लेना। जो भी औपचारिकताएं हों, उसे पूरी कर लेना। पूरी तरह आश्वस्त होकर हम लोग करीब साढ़े नौ बजे आईआईटी रोपड़ पहुंच गए। उस दिन पहली बार हुआ कि गेट पर सुरक्षाकर्मियों ने कहा, सर बेटे से बात करा दो। मैंने इसका कारण पूछा तो बोला, आपने ही कहा न कि आज फाइनली लेने आ गए हैं, इसलिए पूछताछ जरूरी है। कुक्कू की छोटी मामी आज पहली बार कैंपस में आई थी। इसलिए हमने कारों में सामान रखकर पहले कैंपस घूमने की योजना बनाई। कुक्कू हमें चाय पिलाने ले गया। फिर अलग-अलग वैज्ञानिकों के नाम पर बने भवन दिखाए। मेस दिखाया, स्पोर्ट्स कैंपस और अन्य जगह भी हम लोग गये। इस दौरान कुछ फोटो और वीडियो भी तैयार होते रहे।

कैंपस में दोस्तों का मिलना और वह भवुक पल

कुक्कू का सामान हॉस्टल से बाहर लाने में उसके दो दोस्तों गोपाल और शशांक ने भी मदद की। उन्होंने हमें प्रणाम किया। फिर सामान रखवाया। जब वे जाने लगे तो मैंने कुछ फोटो लेने की गुजारिश की। उन लोगों ने फोटो खींचे और खिंचवाए। जब विदा होने की बारी आई तो कुक्कू बोला, 'पापा ये गोपाल है जिसे आपने रात को तंग किया था और ये शशांक है।' मैंने कहा ओह शशांक को भी तो मैं गाहे-ब-गाहे फोन कर दिया करता था। सॉरी बच्चो। दोनों एक साथ बोले, कोई बात नहीं अंकल। असल में एक बार कुक्कू दोस्तों के साथ मनाली, रोहतांग घूमने गया। शाम के समय इसका फोन आया कि ट्रैकिंग के दौरान मैं थोड़ा फिसल गया था... इसके बाद भी वह कुछ बोला, लेकिन नेटवर्क इश्यू के कारण फोन डिस कनेक्ट हो गया। मैं परेशान हो गया। रात में मैंने कई बार कुक्कू को फोन लगाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं हो पाई। मैंने उसके कई दोस्तों और कुछ सीनियर्स को फोनलगा दिया। सुबह तक बात तो नहीं हो पाई, लेकिन सबने आश्वस्त किया कि सभी साथ में हैं। सुबह कुक्कू का फोन आ गया। बोला, पापा आपने तो पूरी दुनिया में हल्ला मचा दिया। मैंने कहा तो था कि बैटरी खत्म है। हम लोग टेंट में रुके हैं। परेशान मत होना। मैंने ज्यादा सफाई नहीं दी। उसके बाद बात आई-गयी हो गयी। आज कुक्कू ने उस प्रसंग की याद दिलाई। हम सब लोग खूब हंसे। इस बात के बाद जब गोपाल और शशांक विदा होने लगे तो बोले, 'कार्तिक अब देखना रोएगा। कल तब सबको विदा कर रहा था, आज खुद विदा हो रहा है।' कुक्कू उनकी बात पर अपनी चिर परिचित अंदाज में मुस्कुरा दिया। हम कार में बैठे, उसके दोनों मित्र दूर तक वीडियो बनाते रहे। मैं अंदर ही अंदर अपने भावनाओं पर नियंत्रण की कोशिश करता रहा। भावना, पिंकी बैठे थे राजू की कार में, कुक्कू मेरे साथ था।

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अपनी तरह से हमने किया स्वागत, स्वस्थ रहो, सुखी रहो बच्चा

घर पहुंचकर हमने कुक्कू का स्वागत किया। मैंने कुछ सजावट की थी। एक-दो जगह लिखा था, 'Welcome Kartik' एक जगह मैंने लिखा, 'Welcome IITEAN Kartik' कुक्कू इस स्वागत को देखकर भावुक हुआ, खुश भी, साथ ही बोला कि आपने IITEAN गलत लिखा है, इसकी जगह IITIAN होना चाहिए। मैंने गलती स्वीकारी। उसकी मामी बोली, भावना को समझो। मैंने कहा, यह तो समझ ही रहा है, 24 साल से मैं भी समझने की कोशिश कर रहा हूं। पत्नी का नाम भावना आने पर सब हंस पड़े। राजू-पिंकी अपने भांजे के लिए खूबसूरत गिफ्ट लेकर आये थे। कुछ किताबें, एक लकड़ी के फ्रेम में बना फोटो। भावना फ्रीज से केक लेकर आ गयी। कुक्कू ने केक काटा। उसी समय मामी ने कुछ अच्छे गाने फोन पर बजाये। यहां बता दूं कि कुछ दिन से मैं एक सूफी गाना गुनगुना रहा था, जिसके बोले हैं, 'हे री सखी मंगल गाओ री, धरती अंबर सजाओ री, आज मेरे पिया घर आएंगे।' खैर इधर केके बंटता रहा, उधर मैं इस दौरान परिवार के सभी लोगों को कुछ फोटो-वीडियो भेजकर मैंने 'लिखा इंजीनियर कुक्कू घर आ गया।' दोपहर बाद मामा-मामी का बेटा भव्य और मेरा छोटा बेटा धवल भी स्कूल से आ गए। कुछ हंसी-मजाक चली। इसके बाद शीला बुआ, प्रेमा बुआ से कुक्कू की बात हुई। दोनों बुआ बेहद भावुक हैं। रोने लग गयीं। खुशी के आंसू। 'हरष विषाद हृदय अकुलानी।' परिवार के अन्य लोगों के बधाई संदेश आए। भागवान कुक्कू को प्रसन्न रखें, स्वस्थ रखें। यही दुआ है। अच्छा इंसान बने रहना बेटा। सभी परिवारीजनों से प्रेम अवश्य बनाए रखना। मित्र भले ही कम बनाना, लेकिन सच्चे मित्र बनना और बनाना। उपदेश तो हम आगे भी देते रहेंगे। कुक्कू को अब अगस्त में नौकरी ज्वाइन करनी है। बेंगलुरू यानी बैंगलोर जाएगा। उस शाम को हमने सुंदरकांड का पाठ किया। 'प्रभु की कृपा भयउ सब काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू।' गरल सुधा रिपु करहिं मिताई, गोपद सिंधु अनल सितलाई।

रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।

लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई।


जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया।

ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर।


इन भावुक और गौरवान्वित पलों की कुछ तस्वीरें और वीडियो साझा कर रहा हूं। जय हो।



















Sunday, May 11, 2025

सारथी, परोपकार, महामहिम की सीख और पीजीआई चंडीगढ़

केवल तिवारी

‘अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्। परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।

अठारह पुराणों में व्यास जी ने दो ही बातें मुख्य रूप से कही हैं। पहली- परोपकार (दूसरों का भला करना) से बड़ा कोई पुण्य नहीं है और दूसरों को कष्ट देने से बड़ा कोई पाप नहीं है। 




इस महान श्लोक से अपनी बात शुरू करने का मुख्य कारण है पिछले दिनों पीजीआई चंडीगढ़ यानी स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान संस्थान-पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ में एक कार्यक्रम की मौजूदगी के बारे में थोड़ा बहुत लिखना। कार्यक्रम था ‘सारथी’ परियोजना का वार्षिकोत्सव। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया। पीजीआई के निदेशक विवेक लाल ने कार्यक्रम की शुरुआत में स्वागत भाषण में अन्य बातों के अलावा कहा कि वह बचपन से एक गीत सुनते आए हैं, ‘अपने लिए जिये तो क्या जिये, तू जी ए दिल जमाने के लिए…।’ उन्होंने कहा कि आज सारथी परियोजना और इससे जुड़े विद्यार्थियों के समर्पण को देखकर इस गीत की सार्थकता समझ में आती है। 

असल में इस कार्यक्रम की प्रेस कवरेज तो बहुत हुई। अनेक अखबारों और चैनलों में इस खबर को दिखाया गया, इसलिए मैं उस विस्तार में नहीं जाता चाहता, लेकिन इसके जो अनौपचारिक पक्ष थे, वह बहुत रोचक थे। मसलन- मुख्य अतिथि कटारिया ने कहा कि यहां कुछ ही बच्चों को सम्मानित किए जाने के लिए मंच पर बुलाया गया, ऐसा क्यों? हंसते-हंसते वह बोले, ‘आप लोगों को शायद लगा होगा कि महामहिम हैँ, थक जाएंगे। कोई थकावट नहीं।’ उन्होंने कहा कि मैं तो अध्यापक रहा हूं। जानता हूं कि मंच पर मिले सम्मान का कितना असर होता है। ये बच्चे इस तस्वीर को अपने घर में लगाएंगे। चार लोगों को बताएंगे। देखने वाले भी सेवा के लिए प्रेरित होंगे। पीजीआई प्रशासन ने भी ‘on the spot’ फैसला लिया और सभागार में मौजूद सभी ‘सारथियों’ को मंच पर बारी-बारी बुलाकर महामहिम और पीजीआई के शीर्ष अधिकारियों के साथ उनकी फोटो खिंचवाई। बातों-बातों में राज्यपाल कटारिया ने कहा कि यह योजना वाकई बहुत अच्छी है। उन्होंने कहा कि एक आम इंसान की तरह अगर मुझे ही पीजीआई के गेट पर छोड़ दीजिए तो मैं खुद ही संबंधित विभाग तक नहीं पहुंच पाऊंगा। बाद में मीडिया से विशेष बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि वह अपने मूल निवास स्थान यानी राजस्थान के उदयपुर स्थित सरकारी अस्पताल में भी इस योजना को लागू करवाने के लिए संबंधित अधिकारियों से बात करेंगे। 

क्या है सारथी योजना

विभिन्न स्कूल-कॉलेजों में चलने वाले राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के तहत विद्यार्थियों को पीजीआई से जोड़ा गया है। इन्हें प्रशिक्षण के बाद विभिन्न स्थानों पर मरीजों और तीमारदारों की सहायता के लिए लगाया जाता है। ये लोग पर्ची बनाने से लेकर संबंधित विभाग तक उन्हें पहुंचाने या मार्गदर्शन का काम करते हैं। अनेक लोगों ने बताया कि यह मार्गदर्शन उनका समय तो बचाता ही है, साथ ही उनका मधुर व्यवहार से आधी थकान दूर हो जाती है। यही बात मुख्य अतिथि ने भी कार्यक्रम में कही कि दो मीठे बोलों से भी बहुत काम हो जाता है। इसे सारथी नाम महाभारत में कृष्ण द्वारा पांडवों के सारथी बनने की कथा से प्रेरित होकर दिया गया। सारथी परियोजना से जुड़े इन बच्चों के हौसले को देख कुछ पंक्तियां फिर से दोहराई जा सकती हैं, जैसे

धन रहै न जोबन रहे, रहै न गांव न ठांव। कबीर जग में जस रहे, करिदे किसी का काम। 

वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर। परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।

तू तू करता तूं भया, मुझ मैं रही न हूँ। वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तूं॥

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग. बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग

सारथी परियोजना का विचार पंकज राय, आईएएस, उप निदेशक प्रशासन (पीजीआईएमईआर) के मन में तब आया जब उन्होंने ऐसी ही योजना को अमेरिका दौरे के दौरान सार्थक होते देखा। उन्होंने प्रोजेक्ट सारथी का एक व्यावहारिक अवलोकन प्रदान किया, जिसमें युवा स्वयंसेवकों को महत्वपूर्ण स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पहलों में एकीकृत करने के अपने दूरदर्शी लक्ष्य को रेखांकित किया और बताया कि कैसे एक छोटा सा विचार पूरे देश में 442 अस्पतालों में लागू किए जा रहे आंदोलन में बदल गया है। कार्यक्रम में उम्मीद जताई गयी कि अब यह प्रोजेक्ट पूरे देश में फैल सकता है। 

अस्पताल में मेरा जाना, प्रो. बंसल और विवेक का साथ

असल में इन दिनों पीजीआई में मेरा जाना इसलिए हो रहा था कि बेटे कार्तिक तिवारी को ईएनटी संबंधी कुछ समस्याएं हैं। ईएनटी विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर प्रो. संदीप बंसल के पास यह केस है। पिछले दिनों उन्होंने एक विशेष टेस्ट डाइस करवाया था। कुछ और जांच रिपोर्ट भी उन्हें दिखानी थी। बच्चे को पीजीआई में दिखवाने एवं जरूरी औपचारिकताओं को पूरा करवाने में ऑफिस में हमारे साथ विवेक शर्मा ने बहुत मदद की। वह डेस्क पर कार्य के अलावा पीजीआई की कवरेज भी करते हैं। उस दिन भी हम लोगों ने प्रो. बंसल को पहले रिपोर्ट दिखवाईं फिर इस कार्यक्रम में चले गये। हम लोग बात करते हुए जा रहे थे कि पीछे से प्रो. बंसल भी आ रहे थे। हम लोग रुककर उनके साथ हो लिए। उनके साथ जो अन्य बातें हुईं, वह तो मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं ही, साथ ही उन्होंने कहा कि ओपीडी में इतने मरीजों को छोड़कर आना कष्टकारी लगता है, लेकिन यहां आने के लिए भी कहा गया है। यह जिम्मेदारी भी जरूरी है। साथ ही उन्होंने रुटीन समय से ज्यादा देर तक उस दिन ओपीडी में मरीजों को देखा। धन्य हैं डॉक्टरों का समर्पण भाव। असल में तो इन्हीं से सीखने लायक है। अलग-अलग तरह के मरीज आते हैं। कई ऐसे होते हैं जो सामान्य बात को भी नहीं समझ पाते। एक दिन में सैकड़ों प्रवृत्ति के लोगों से मिलना, उन्हें हैंडल करना, इलाज का सही मार्ग बताना और भी बहुत कुछ। सैल्यूट है। 

मानसी का ओजस्वी भाषण

सारथी प्रोजेक्ट से जुड़े विद्यार्थियों की ओर से अपनी बात रखने के लिए मानसी शर्मा आगे आईं। परोपकार संबंधी शेर-ओ-शायरी से बात की शुरुआत कर मानसी ने समां बांध दिया। मानसी का ओजस्वी भाषण जोश भरने वाला और परोपकार के प्रति उन्मुख करने की प्रेरणा देने वाला था। एनएसएस स्वयंसेवकों के परिवर्तनकारी अनुभवों को व्यक्त करते हुए, स्नातकोत्तर सरकारी स्कूल, सेक्टर 11 की इस छात्रा ने विकास और सामाजिक योगदान की अपनी व्यक्तिगत कहानी साझा की। उन्होंने कहा, ‘प्रोजेक्ट सारथी के माध्यम से, हमने सीखा है कि सेवा का मतलब सिर्फ़ मरीजों का मार्गदर्शन करना या फॉर्म भरना नहीं है - यह सम्मान बहाल करने और उम्मीद जगाने के बारे में है। दूसरों की मदद करके, हमने खुद को विकसित किया है। क्योंकि सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है, और मानवता से बड़ा कोई कर्म नहीं है।’ कार्यक्रम में मंच संचालन से लेकर बातों का सिलसिला, भाषण आदि सभी कार्यक्रमों की कड़ियां बहुत सधे हुए और व्यवस्थित तरीके से संपन्न हुई। सभी को साधुवाद।

Sunday, April 13, 2025

हेमंत पाल जी : व्यक्तित्व, कृतित्व और फ्लैशबैक

केवल तिवारी

चूंकि यह कोई औपचारिक लेखन नहीं है, इसलिए इसे अपने अंदाज में ही लिखूंगा। इस अनौपचारिक ब्लॉग लेखन में बात वरिष्ठ पत्रकार, लेखक हेमंत पाल की। उनके साथ कुछ 'फ्लैशबैक नाता' है। एक तो यह कि वह मध्य प्रदेश के प्रतिष्ठित दैनिक नईदुनिया में लंबे समय तक रहे, मैं भी उसी अखबार के दिल्ली केंद्र में कुछ समय रहा। उनके लेखन को मैंने पहले भी पढ़ा है। अब वह हमारे अखबार दैनिक ट्रिब्यून के नियमित लेखक हैं। एक साल पहले उनसे इंदौर में मुलाकात हुई। वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार नरेंद्र निर्मल की बिटिया की शादी समारोह में। मुलाकात का जरिया बने हमारे अखबार के सहायक संपादक अरुण नैथानी जी।



अब बात हेमंत पाल जी के फ्लैशबैक की। थोड़ी देरी हुई उनकी इस रचना के बारे में लिखने में। फिल्मी दुनिया पर आधारित उनकी इस किताब को नयी दिल्ली स्थित भारत मंडपम से फरवरी में विश्व पुस्तक मेले के दौरान ही खरीद लिया था, लेकिन बीच में दो किताबें मुझे अपने कार्यालय से मिली थीं, समीक्षा के लिए। उनकी समीक्षा कर दी फिर कुछ पारिवारिक व्यस्तताओं में रहा। इस बीच, समय मिलते ही पूरी किताब पढ़ डाली। किताब के बारे में लिखने से पहले बता दूं कि हेमंत जी अक्सर हमारे अखबार के मनोरंजन मैग्जीन के लिए लिखते हैं। अन्य कई जगह भी उनका लेखन चलता है। वह जितना अच्छा लिखते हैं, उतने ही बेहतर मिलनसार व्यक्ति हैं। पहली औपचारिक मुलाकात में ही छा जाने वाले। अब बात पुस्तक 'फ्लैशबैक' की। 

पुस्तक का पूरा नाम है फ़्लैश बैक (फिल्मी कथानकों के इतिहास का लेखा-जोखा) कवर पेज आकर्षक है। रील जैसी छवि में तीन पोस्टर हैं। कुल 24 अध्यायों वाली इस किताब में लीक से हटकर फिल्मी जानकारी है। कह सकते हैं कि गागर में सागर भर दिया है। फिल्में चल पड़ने कि कोई सेट फार्मूला नहीं है। खूब लंबी फिल्में बनीं, दो-दो इंटरवल वाली। छोटी भी बनीं। कथानकों को लेकर भी विविध प्रयोग हुए। गीतों से भरपूर फिल्में भी बनीं। सच्ची घटनाओं पर भी फिल्म बने, विषयों पर भी विविधता दिखी। बात चाहे होली के रंगों की हो, भूत-प्रेत की कहानियां हों, सस्पेंस की हो या कुछ और... हेमंत जी ने आम जानकारी से हटकर सामग्री पेश करने की सफल कोशिश की है। कुल 24 अध्यायों वाली यह किताब पठनीय और संग्रहणीय है। प्रकाशक का नाम है, न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, नयी दिल्ली। मुद्रक, सूरज प्रिंटर्स और लेआउट नितिन पंजाबी (बीएस ग्राफिक्स, इंदौर) फिल्मी दुनिया पर इस बेहतरीन किताब के लिए हेमंत जी को हार्दिक बधाई।






यादों के खजाने में एक और आभूषण, अपनेपन का भव्य समारोह

केवल तिवारी

अपनों का आना, खुशियों को मनाना

कुछ बातें बनाना, कुछ सुनना-सुनाना।

नयी पीढ़ी को संस्कार भी हैं सिखाना

'भव्य' कार्यक्रम में जनेऊ धारण करना।


आगंतुक बने बदलते मौसम के गवाह

सबको भायी चंडीगढ़ की हरियाली राह।

दो-तीन दिन फुर्र हुए, और भी रहीं चाह

अब यादों को समेटे कह रहे हैं वाह-वाह।



उक्त पंक्तियां अभी अनायास निकल गयीं, जब एक पारिवारिक, सांस्कारिक समारोह के संबंध में अपने इस ब्लॉग की रूपरेखा बना रहा था। असल में गत नौ अप्रैल को बालक भव्य जोशी का जनेऊ संस्कार हुआ। भव्य जी के पिता भास्कर जोशी और मेरी पत्नी भावना जुड़वां भाई बहन हैं। इसलिए इस कार्यक्रम की कड़ी ऐसी ही हुड़ती हुई मिलेंगी। इसमें एक और रोचक है कि भव्य और मेरा बेटा धवल लगभग समान उम्र के हैं और अभी एक ही स्कूल और एक ही क्लास में पढ़ते हैं। पहले कार्यक्रम जनवरी में तय था। लगभग तैयारी भी हो गयी थी, हरिद्वार जाने की योजना थी। फिर कहते हैं न कि होई हैं वही जो राम रचि राखा। साथ ही यह भी कि 'ईश्वरं यत करोति शोभनम करोति।' वही हुआ। सब ठीक हुआ, मेरा उपस्थित रहना इसलिए मुश्किल लग रहा था कि मेरा लखनऊ जाने का कार्यक्रम बन चुका था। फिर कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं कि लखनऊ जाना टला और इस कार्यक्रम का गवाह बना। हल्द्वानी से आए साढू भाई सुरेश पांडेजी उनकी माता जी, उनकी पत्नी, बड़ी भाभीजी, उनकी बेटी, शेखरा दा उनकी पत्नी उनके सुपुत्र। गुड़िया दीदी, उनका बेटा और बेटी। (स्पष्ट है कि सभी आगंतुक ससुराल पक्ष की कड़ियों से जुड़ी कड़ी हैं)। साथ में भास्कर और प्रीति के पड़ोसी।


हंसी-मजाक और कुछ सैर सपाटा

कार्यक्रम की शुरुआत से ही हंसी-मजाक चलती रही। पांडेजी और मैं 'सेंट्रल सब्जेक्ट' रहे। फूफा की श्रेणी के हम दोनों ने भी इसे खूब एंजॉय किया। अपने पास कोई खास काम नहीं था, इसलिए बातों में ही ज्यादा मशगूल रहा। हालांकि कभी-कबार मन में कुछ-कुछ चलता रहा, लेकिन इस कुछ-कुछ को हावी नहीं होने दिया। खूब बातें कीं। लोगों के विचार भी जानने को मिले। कुछ कहानियों और कविताओं के सब्जेक्ट भी मिल गये। भव्य चूंकि बहुत हंसमुख, चंचल है तो उसने भी सबका मन लगाकर रखा। धवल और भव्य भले नेचर में थोड़ा अलग हों, लेकिन दोनों में एक बात कॉमन है कि दोनों मेहमानों के आने पर खुश होते हैं और चाहते हैं कि सब एकसाथ कुछ समय रहें। कोशिश भी की गयी कि बच्चे ग्रुप में कुछ समय साथ रहें। ऐसे में नेहा के नेतृत्व में मृत्युंजय, ईशू, श्रद्धा के साथ इन दोनों बच्चों ने अच्छा समय व्यतीत किया। कुछ समय इसमें सिद्धांत जोशी उर्फ सिद्धू की भी भागीदारी रही। बच्चों के लिहाज से इसे 'Quality time expend' कहा जा सकता है। इसी दौरान घूमने का कार्यकम बना। लगभी सभी लोग रॉक गार्डन, रोज गार्डन, सुखना लेक और शाम को प्रेस क्लब गये। विस्तार से लिखने के बजाय इस ब्लॉग के अंत में उसकी कुछ फोटो साझा करूंगा। बातों-बातों में उनकी बातें भी हुईं जो समारोह में नहीं पहुंच पाए।


मनोज पंडित जी द्वारा मेरे घर भी पाठ

जनेऊ संस्कार समारोह को संपन्न कराने के लिए हल्द्वानी से मनोज पंडित जी पहुंचे थे। वह पांडेजी की माताजी, शेखरदा, लवली भाभी और सिद्धू के साथ मुख्य समारोह की पहली शाम पहुंच गए थे। जनेऊ के अगले दिन हम लोग पंचकूला स्थित माता मनसा देवी मंदिर गए। पंडित जी ने रास्ते में मुझसे कहा कि एक छोटा सा पाठ कर देते हैं। अपने बड़े बेटे कुक्कू के निमित्त में ऐसा चाहता भी था। अचानक बने इस कार्यक्रम को संक्षिप्त लेकिन दिल को खुश करने वाला कह सकते हैं। पूर्णमासी, शनिवार की सुबह घर में हुए इस कार्यक्रम से बहुत तसल्ली मिली। ईश्वर से प्रार्थना है कि सबको स्वस्थ रखें। शनिवार को मेरे घर में पूजा के बाद भास्कर के यहां सुंदरकांड पाठ का आयोजन हुआ। समवेत स्वर में सुंदरकांड पाठ से दिन बन गया। प्रीति की बहन गुड़िया दीदी और लवली भाभी द्वारा बजाये गए ढोल की थाप पर सभी ने एक साथ पाठ से जो भक्तिमय माहौल बनाया वह अविस्मरणीय है।


और फिर लग जाना अपने काम में

आखिरकार मनुष्य तो कर्म के अधीन है। कर्म करते रहेंगे तो अगले ऐसे ही किसी यादगार कार्यक्रम के तैयार होंगे। कर्म प्रधान होने के नाते शनिवार शाम होते-होते आगंतुकों के जाने की शुरुआत हो गयी। रविवार सुबह तक एक बड़ी अपने गंतव्य तक पहुंच गयी। हम सब लोग भी अपने-अपने काम में लग गए। लेकिन इस बीच फोटो, वीडियो का आदान-प्रदान जारी हैं। उन्हें देखते-देखते कुछ बातें भी साझा की जा रही हैं। बातें होती रहेंगी। कार्यक्रम सच में यादगार रहा। भव्य को हम सबकी ओर से ढेर सारा प्यार, आशीर्वाद, शुभकामनाएं। भास्कर-प्रीति ऊर्फ राजू-पिंकी को बहुत-बहुत बधाई।