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Friday, October 29, 2021

वह सफर और सफर के कितने हमसफ़र : काठगोदाम यात्रा

 केवल तिवारी

मैं लिखता जरूर हूं, तुम मत ढूंढ़ना किंतु-परंतु

आपका जिक्र न भी हो तो मानिए 'सर्वे संतु।'



जी हां, लिखता जरूर हूं, सो लिख रहा हूं। डायरी लेखन थोड़ा कम कर दिया है। एक तो डायरियों का ढेर लग गया है। दूसरे, बाद में उन्हें रद्दी ही तो होना है। मैं हर मंच पर कहता हूं कि डायरी लेखन मेरा ईश्वर से सीधा संवाद है, अब यह संवाद दिल ही दिल में ज्यादा होता है। डायरी लेखन बिल्कुल बंद नहीं हुआ। डायरी लेखन यानी ईश्वर संवाद 'positive' 'All type' जारी है, थोड़ा हौले-हौले। खैर छोड़िये अभी डायरी की बात। अभी आपको ले चलता हूं अपनी काठगोदाम तक की यात्रा पर। पहली बार इतनी लंबी ड्राइव। चंडीगढ़ से सीधे काठगोदाम। चूंकि किसी शायर ने ठीक ही कहा है-

हर मंजिल की एक पहचान होती है। और हर सफ़र की एक कहानी!

इस सफर की भी कहानियां हैं। जाते वक्त की भी और आते वक्त की भी। 3 अक्तूबर को बड़े बेटे कुक्कू का JEE Advance का पेपर था, 4 अक्तूबर की सुबह हम लोग निकल पड़े ‘आदरणीय गूगल चाचा’ के इशारों पर। कहां-कहां नहीं ले गये गूगल चाचा। हमने जो परेशानियां झेलीं, वह तो हम ही जानते हैं, लेकिन जब समय पर मंजिल पर पहुंच गए तो सभी ने कहा, नहीं सही रूट दिखाया होगा तभी तो इतनी जल्दी पहुंच गए। खैर छोड़िये सफर है तो परेशानियां आएंगी ही। आनंद भी तो आया। आत्मविश्वास भी तो जगा। फिर सबसे बड़ी बात अपनों से मुलाकात। घूमने-फिरने का बहुत शौकीन हूं। जब मौका मिलता है कहीं जाने का तो चला जाता हूं। काठगोदाम में जब हम भावना के चाचा सुरेश जोशी जी से मिला तो उनकी एक बात बहुत अच्छी लगी कि जब तक शरीर फुर्तीला है तब तक खूब घूमना चाहिए। वो सब बेकार की बातें हैं कि आराम से बुढ़ापे में घूम लेंगे। उन्होंने बताया कि वह बहुत पहले ही चार धाम यात्रा के अलावा देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों एवं पर्यटन स्थलों पर घूम चुके हैं। मैं उनकी बात से पूरी तरफ इत्तेफाक रखता हूं। शायद इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर गालिब साहब कह गए-

सैर कर दुनिया की गालिब जिन्दगानी फिर कहां, 

जिन्दगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहां!


चोरगलिया, यादों का मन और मनमोहक जीवा

4 अक्तूबर को तो थकान थी सो कहीं अन्यत्र नहीं गए। अगले दिन हम लोग चले गए सितारगंज रोड स्थित चोरगलिया नामक स्थान पर। प्रेमा दीदी के यहां। साथ में भावना की बड़ी भाभी भी। वहां दीदी-जीजाजी से मिला। दीदी खेतों में गई थी। जब पता चला मैं आया हूं तो दौड़ी चली आई और उससे गले मिला तो जैसे बचपन की दीदी और अपनी माताजी याद आ गईं। एक खास तरह की घास की खुशबू से मन पुराने दिनों की ओर ले गया। फिर तुरंत संयत हुआ। दीदी से कुछ बातें हुईं। तब तक भानजे मनोज की पत्नी तनु (रेनु) ने भोजन बना दिया था। इस दौरान सबसे रोचक प्रकरण रहा मनोज की बेटी जीवा से बातचीत का। वह ऐसे बोलती है जैसे कोई सुंदर गुड़िया सी बच्ची किसी टीवी शो की डबिंग में अपनी आवाज दे रही हो। जैसे- क्या आपको मेरी याद आती थी। क्या आप नींबू पानी पीना पसंद करोगे। उससे कोई भी बात पूछो तो वह ऐसे जवाब देती मानो पूरा वाक्य याद किया हो साथ में फुल स्टाप भी। मैंने पूछा आप हमें याद करते थे, उसका जवाब था बिल्कुल। भावना ने पूछा चंडीगढ़ आओगे, उसका जवाब आना तो पड़ेगा। आपको गिफ्ट कैसा लगा के जवाब में बोली-बहुत अच्छा लगा। ऐसी ही कई बातों में कब तीन घंटे गुजर गए पता भी नहीं चला। वहां अन्य दीदीयों (दीदी की देवरानियां और जीजाजी की दीदी, उनकी पोती) आदि से मिला। शाम को लौट आए। हल्द्वानी आकर पहले भानजी रेनू से मिले फिर साढू भाई यानी भावना के दीदी-जीजाजी (गुड़िया जी एवं सुरेश पांडे जी) के यहां गए। वहां भावना के दूसरे नंबर के भाई-भाभी एवं भतीजा यानी शेखरदा, लवली भाभी और सिद्धांत जोशी पहुंचे थो। वहां डिनर के हल्का-फुल्का वॉक के दौरान बना अगले दिन रिसार्ट में जाने का।

कोटाबाग का रिसॉर्ट और आसमान के तारे












मशहूर संवाद लेखक एवं शायर राही मासूम राजा का एक शेर है-

इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई, 

हम न सोए रात थक कर सो गई।  

सचमुच ऐसा ही हुआ कोटाबाग के उस रिसॉर्ट में। असल में बुधवार की सुबह मैं, पांडे जी, उनका बेटा यीशू, मेरे बेटे कार्तिक और धवल एवं भावना के बड़े भाई नंदाबल्लभ जोशी (नंदू भाई जो उसी वक्त काठगोदाम से आए थे) निकल पड़े कोटाबाग के लिए। महिला मंडली नहीं आई, उन्हें कुछ खरीदारी करनी थी। हम लोग सबसे पहले वहां पांडे जी के मित्र के रिसॉर्ट ‘कॉर्बेट हिल्स रिसॉर्ट’ पहुंचे। बच्चे तो वहां का वातावरण और उस क्षेत्र की हरियाली में ही खो गए और फोटो सेशन में जुट गए। वहां चाय पीकर हम लोग दाबका नदी की ओर चल दिए। बेहतरीन लोकेशन और हमारे अलावा वहां कोई नहीं, फिर देर कहां लगनी थी और कपड़े उतारे और सभी घुस गए नदी में। एक घंटे पानी में पड़े रहे, फिर गीले-गीले में ही लंच किया (जो महिला मंडली घूमने नहीं आई थी, उन्होंने बेहतरीन लंच बनाकर पैक कर रख दिया था)। धीरे-धीरे ठंड सी लगने लगी। फिर वापसी का कार्यक्रम बना। शाम को उस इलाके में एकदम सन्नाटा। बच्चे बार-बार कहते ‘आसमान में देखिए क्या साफ तारे दिख रहे हैं।’ मुझे याद आया जब एक बार हिंदुस्तान में एक स्टोरी लाइट पर की थी। उस स्टोरी का लब्बोलुआब यही था कि बिजली की हैवी लाइट में तारे कहीं गुम हो गए हैं। वाकई आप शहरों में आसमान की तरफ देखिए आपको बहुत गौर करने से शायद तारे दिखेंगे। पर कोटाबाग के उस इलाके में तो मजा आ गया। अपने रूम से कुछ दूर आकर हमने रिसॉर्ट के ही कैफेटेरिया में डिनर किया। बच्चे रूम में चले गए और मैं, पांडेजी और नंदूभाई जी थोड़ा सैर करने निकल गए। वहां दूर-दूर इक्का-दुक्का घरों में जलती रोशनी एक अलग ही रुख दे रही थी। कुछ ही देर में आभास हुआ कि इतने बियाबान में ज्यादा दूर नहीं जाना चाहिए सो वापस लौट आए। बच्चे टीवी देख रहे थे, मोबाइल पर गेम भी खेल रहे थे। हम लोग बातें करते रहे। सोचा, ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं था, बल्कि चंडीगढ़ से तो यही सोचकर चले थे कि इस बार कोटाबाग कहां जाना होगा, लेकिन निदा फाजली साहब के शब्दों में कहूंगा-

अपनी मर्ज़ी से कहां अपने सफ़र के हम हैं, 

रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं।

इस शानदार छोटे से ट्रिप के लिए पांडेजी का बहुत-बहुत धन्यवाद। साथ में उनके मित्र का भी जिनके रिसॉर्ट में रुके और जिनका बनता हुआ रिसॉर्ट देखा। आंवले भी तोड़े उस दौरान।

नवीन परिवार, लता का घर, दद्दू से बातचीत, रुचि-दीपेश और रिशू से मुलाकात




बृहस्पतिवार से नवरात्र शुरू थी। सो सुबह भावना, नेहा एवं भाभीजी के साथ गांव के मंदिर गए। वहां भी देवीस्वरूपा एक बच्ची मिली। शांत सी। भावना के आसपास मंडराती सी। मंदिर में हाथ जोड़े। दोपहर बाद हम लोग हल्द्वानी आए। कुछ मंदिर और गए और शाम होते-होते रिश्ते में भानजे लेकिन अनुभवी एवं उम्र में मेरे से खूब बड़े नवीन पांडे (राजस्थान वाले) के घर गए। उनसे बहुत सारी बातें हुईं। कोरोना काल में अपनों के खोने की चर्चाएं हुईं। फिर उनका घर देखा और उनकी छत से दिख रहे नजारे भी। अगले दिन हम पहले मेरी सबसे बड़ी भानजी लता के यहां गए। उसके पति हरीश पंत जी भीमताल में आजकल पोस्टेड हैं, लेकिन अच्छा इत्तेफाक रहा कि वह उसी दिन आ गए। उनसे बातचीत हुई। फिर पहुंचे दूसरी भानजी रुचि के घर। रुचि ने लंच तैयार किया था। दीपेश आये और लंच किया फिर दीपेश से गुजारिश की कि दद्दू के यहां ले चलो। दद्दू अब रुचि के ससुर हैं, लेकिन उनको जानता बचपन से हूं। खरी बात कहने वाले। दद्दू के यहां गए। दीपेश की माताजी इन दिनों बेहद अस्वस्थ हैं। वहां दीपेश की बहन भारती और उनकी बेटी भी आई हुई थी। कुछ देर बातें हुईं। चाय पी और लौट आए। इसी दौरान मनोज भी बहुत दूर से बाइक से आकर मिलने आ गया, बहुत अच्छा लगा। इससे पहले चोरगलिया में पप्पू भाई, गुड्डू नेताजी से भी बहुत बातें हो चुकी थीं। बेशक बहुत भागादौड़ी वाला सफर रहा, लेकिन फिर निदा फाजली का एक शेर ऐसे मौकों के लिए-

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो, 

सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो।

... और कालीचौड़ की भक्तिमय यात्रा




यूं तो शनिवार सुबह मेरा लौटने का कार्यक्रम था। मुझे हर हाल में रविवार को ऑफिस ज्वाइन करना था। क्योंकि-

जूते महंगे हैं अब, पर छोटा सा सफर है, 

एक तरफ ऑफिस, दूसरी तरफ घर है।

लेकिन तय हुआ कि रविवार अल्लसुबह निकल जाएंगे। शनिवार को काली चौड़ मंदिर चलते हैं। शेखरा को एक दिन पहले जरूरी काम से दिल्ली आना था। वे आए भी, लेकिन उनकी मीटिंग कैंसल हो गई इसलिए शुक्रवार देर रात वह आ चुके थे। बेशक वह दिल्ली गए और भागमभाग वापस आए और परेशान हुए, लेकिन हमारे लिए तो कालीचौड़ जाने का आनंद और बढ़ गया। सुबह पांडे जी अपनी माता जी, पत्नी एवं बेटी के साथ काठगोदाम पहुंच गए। यहां से शेखरदा का परिवार एवं नंदूभाई जी की बेटी नेहा तैयार हुई। हम चार तो थे ही। लंच का सामान यहां भी सुबह-सुबह तैयार हो गया। हम लोग गए। पहाड़ी मार्ग पर कार चलाने का थोड़ा सा अनुभव भी हुआ। यहां भी एक नदी मिली तो मैं, पांडेजी, सिद्धांत और धवल कूद गए। बाकी सब ने दूर से देखकर ही आनंद उठाया। दोपहर बाद आ गए और वापसी की तैयारी में जुट गए। जितना काठगोदाम जाने में दिक्कत हुई, उतना ही आनंद वापसी में आया। शेखरदा ने रूट सही समझा दिया। 





इसका फायदा यह हुआ कि हम हरिद्वार भी हो आए। गंगा मां के दर्शन हुए। गंगाजल भी ले आए। आकर ड्यूटी भी ज्वाइन कर ली। शानदार सफर के संबंध में कुछ और पंक्तियां कुछ नए अंदाज में पढ़िए-

रास्ते कहां खत्म होते हैं जिंदगी के सफर में, मंजिल तो वही है जहां ख्वाहिशें थम जाएं।

 

मुझे तो पता था तू कहीं और का मुसाफिर था,

हमारा शहर तो बस यूं ही तेरे रास्ते में आ गया।

 

थोड़ी सी मुस्कुराहट बरकरार रखना, 

सफर में अभी और भी किरदार निभाने हैं।

 

कुछ सपने पूरे करने हैं, कुछ मंजिलों से मिलना है

अभी सफर शुरू हुआ है, मुझे बहुत दूर तक चलना है!

 

घूमना है मुझे ये सारा जहां तुम्हे अपने साथ लेके

बनानी हैं बहुत सी यादें हाथों में तुम्हारा हाथ लेके!

पूरा पढ़ लिया हो तो धन्यवाद। न भी पढ़ा हो तो भी धन्यवाद। सबसे ज्यादा धन्यवाद उन सभी रिश्तेदारों, नातेदारों का जिनकी वजह से सफर यादगार रहा।

9 comments:

Naren said...

बेहतरीन सर,
सफर है तो परेशानियां आएंगी आनंद भी तो आएगा

kewal tiwari केवल तिवारी said...

पढ़ने और कमेंट के लिए धन्यवाद

kewal tiwari केवल तिवारी said...

इस बार भी लोगों ने सराहा और whatsapp पर कमेंट दिए
यह कमेंट है सतीश जोशी यानी सोनू का। सोनू भावना का चचेरा भाई
[30/10, 9:52 am] Sonu Kgm: 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[30/10, 9:52 am] Sonu Kgm: Superb jijaji.....
[30/10, 9:52 am] Sonu Kgm: Moga bhi aaiye ek baar.......

kewal tiwari केवल तिवारी said...

👌👌👌💏💏
यह था सबसे बड़ी भानजी लता का कमेंट

kewal tiwari केवल तिवारी said...

काठगोदाम नवीन पांडे जिन्हें हम नंदन भी कहते हैं, उन्होंने लिखा
मनभावन लेख । पढ़कर आनंद की अनुभूति हुई ।सादर प्रणाम ।

Bhawna said...

बहुत ही शानदार सफर था।

kewal tiwari केवल तिवारी said...

शानदार और यादगार सफर है केवल khush raho👌🏻🤗🤗🥰
और ये है शीला दीदी का कमेंट

kewal tiwari केवल तिवारी said...

पूरा पढ़ा | शानदार सफ़र की शानदार बातें |👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
लवली भाभी जी का कमेंट

Prakash Tiwari said...

बहुत सुंदर वर्णन